हैदराबाद का भारत में विलय | Annexation Of Hyderabad To India

हैदराबाद का भारत में विलय | Annexation Of Hyderabad To India In Hindi हैदराबाद कश्मीर के बाद दूसरी सबसे बड़ी रियासत थी. जो दक्कन के पठार में स्थित थी.

चारों ओर से भारतीय भाग से घिरी हुई थी. यहाँ पर स्वतंत्रता के समय निजाम मीर उस्मान अली का शासन था. (हैदराबाद का पहला निजाम) हैदराबाद की आबादी 85 प्रतिशत से अधिक हिन्दू थी लेकिन सेना, पुलिस और प्रशासन में मुसलमानों का दबदबा था. 

Annexation Of Hyderabad To India In Hindi हैदराबाद रियासत का विलय

हैदराबाद का भारत में विलय | Annexation Of Hyderabad To India

निजाम इस मुस्लिम प्रशासनिक शक्ति एवं जिन्ना की सहायता के आश्वासन के बाद स्वतंत्र राज्य की स्थापना के सपने देख रहा था.

जब माउंट बैटन ने हैदराबाद को संविधान सभा में शामिल होने की सलाह दी तब उन्होंने कहा कि उन पर दवाब डाला गया तो वे पाकिस्तान में शामिल होने पर गंभीरता से विचार करेगे.

यहाँ तक की निजाम ने हैदराबाद के मामले को भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने का प्रयास भी किया.

इसी बीच हैदराबाद में रजाकार नामक उग्रवादी मुस्लिम साम्प्रदायिक संगठन तैयार हुआ, जिसने बड़े पैमाने पर अत्याचार आरम्भ किये.

इस तरह रजाकारों ने हैदराबाद रियासत के विलय के सवालों को साम्प्रदायिक समस्या के रूप में रूपांतरित कर दिया.

हैदराबाद रियासत विलय में सरदार पटेल की भूमिका (operation polo in hindi)

दूसरी ओर ऐसी खबरे भी आने लगी कि निजाम ब्रिटिश एजेंडों के माध्यम से पाकिस्तान से हथियार प्राप्त कर रहा है. हैदराबाद से बड़ी संख्या में जनता पलायन से पडौसी राज्य मद्रास (तमिलनाडु) पर भार बढ़ गया.

इन सब बातों के कारण सरदार पटेल ने इन्तजार करने की बजाय निर्णायक कार्यवाही करने का फैसला किया. सरदार पटेल ने निजाम के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करना तय किया. और इसकी अनुमति हेतु मंत्रीमंडल की बैठक बुलाने का पंडित नेहरु से आग्रह किया.

बैठक में सरदार पटेल ने हैदराबाद पर आक्रमण की योजना प्रस्तुत की. प्रधानमन्त्री ने इस पर शंका व्यक्त की.

पटेल ने इस कार्यवाही को आवश्यक बताते हुए कहा कि यदि अपने पेट का यह फोड़ा निकालकर हम फैक नही देगे तो स्वयं अपनी कब्र खोदने का काम करेगे.

13 सितम्बर 1948 को भारतीय सेना ने हैदरा बाद पर तीन ओर से हमला किया. इस हमले को ऑपरेशन पोलो नाम दिया. निजाम के सैनिक एक दो दिन में ही मौर्चा छोड़कर भागने लगे.

रजाकारों ने भी चार दिन में ही समर्पण कर दिया. इस लड़ाई में भारतीय सेना के बयालीस जबकि दो हजार रजाकार मारे गये.

17 सितम्बर 1948 को निजाम ने हैदराबाद रियासत के भारत में विलय को स्वीकार किया. सरदार पटेल ने हैदराबाद जाकर निजाम से विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाएं.

पटेल ने कहा ”निजाम समाप्त हो गया है, भारत के सीने का केन्सर (फोड़ा) हमने मिटा दिया है” इस प्रकार सरदार पटेल की द्रढ़ता, दूरदर्शिता और साहस के परिणामस्वरूप हैदराबाद का भारत में एकीकरण संभव हुआ.

भारतीय सेना पर लगे थे जुल्म के आरोप

जब हैदराबाद के निजाम ने सरदार वल्लभभाई पटेल के निवेदन को ठुकरा दिया तो उसके बाद मजबूर होकर सरदार वल्लभ भाई पटेल के आदेश पर भारतीय सेना ने हैदराबाद में सैनिक कार्रवाई चालू की थी और फिर सैनिक कार्यवाही पूरी होने के बाद हैदराबाद को भारत में मिला लिया गया था। 

इस दरमियान भारतीय सेना पर कई आरोप भी लगे थे। लोगों का यह कहना था कि भारतीय सेना ने हैदराबाद में काफी भारी मात्रा में लोगों की संपत्तियों को लूटा था और उनके साथ जुल्म किया था, साथ ही उन्होंने कई महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घटना को भी अंजाम दिया था।

हालांकि उस टाइम यह घटना बाहर नहीं आ सकी। बाद में इस आरोप के बाहर आने पर एक कमेटी का गठन आरोपों की जांच करने के लिए किया गया, उस कमेटी का नाम सुंदरलाल कमेटी थी।

हालांकि इस कमेटी ने जांच तो की परंतु इसकी जांच को कई सालों तक बाहर नहीं आने दिया और अंत में तकरीबन 65 साल के बाद इस कमेटी की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया जो कि साल 2013 में लोगों के सामने आई

इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना और हैदराबाद के निजाम के सैनिकों के बीच हुई लड़ाई में तकरीबन 10000 से लेकर के 40000 लोगों की मौत हुई थी, वहीं कई लोगों का ऐसा कहना था कि मरने वालों की संख्या 200000 से भी ज्यादा थी। 

रियासतों का विलय और हैदराबाद में पुलिस एक्शन

अंग्रेजों की गुलामी से जब हमारा भारत देश मुक्त हुआ तो सरदार पटेल को सरकारी आवास दिया गया परंतु उन्होंने सरकारी आवास में रहने से मना कर दिया बल्कि वह इसकी जगह पर एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर स्थित बंगले के एक हिस्से में रहने लगे। यह एक प्राइवेट बंगला था जिसके मालिक बनवारी लाल खंडेलवाल थे।

इसी बंगले में रहते हुए सरदार पटेल ने तकरीबन 562 देसी रियासतों का भारत में विलय करवाया और एक अखंड भारत राष्ट्र का निर्माण किया।

यही वह बंगला है जहां पर रहते हुए सरदार पटेल ने हैदराबाद में किस प्रकार से पुलिस एक्शन किया जाए इसकी रणनीति तैयार की जिसमें उनका साथ इनके कई सलाहकारों ने दिया।

सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत में विलय करने के लिए जिस ऑपरेशन को चलाया, उसका नाम ऑपरेशन पोलो रखा गया जो कि साल 1948 में 13 सितंबर की सुबह को 4:00 बजे चालू हुआ था.

इसी एक्शन के कारण हैदराबाद के निजाम को सरदार वल्लभ भाई पटेल के सामने घुटने टेकने पड़े और इस प्रकार हैदराबाद भारतीय संघ में शामिल हो गया।

हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली

मीर उस्मान अली वही नवाब थे जिन्हें हैदराबाद का आखिरी निजाम कहा जाता है। इनके पिता जी का नाम महबूब अली खान था और यह अपने पिताजी के दूसरे पुत्र थे। इन्होंने साल 1911 से लेकर के साल 1948 तक हैदराबाद की रियासत के निजाम के पद को संभाला। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार मीर उस्मान अली का यह सपना था कि वह हैदराबाद को एक स्वतंत्र रियासत बनाए। ऐसा भी कहा जाता है कि उस टाइम इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा कई बार हैदराबाद के निजाम से हैदराबाद को इंडिया में मिला लेने की बात कही गई थी परंतु उन्होंने इंडियन गवर्नमेंट की बात नहीं मानी।

हालांकि बाद में जब गवर्नमेंट ने ज्यादा प्रेसर दिया तब उन्होंने हैदराबाद को भारत में मिला लेने की बात पर हामी भर दी जिसके बाद इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा इन्हें हैदराबाद का राज प्रमुख बनाया गया।

जब मीर उस्मान अली ने भारतीय गवर्नमेंट को दिया 5000 किलो सोना

बता दें कि, मीर उस्मान अली को लोग एक रईस निजाम कहते थे जिनकी रहीसी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने तकरीबन 5000 किलो का सोना भारतीय गवर्नमेंट को दान में दे दिया था। 

यह बात उस टाइम की है जब साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच बहुत ही घमासान युद्ध हुआ था और इस युद्ध में भारत के हाथों पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा था।

हालांकि इस युद्ध के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह से उथल-पुथल हो गई थी और भारतीय अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से राहत कोष में दान देने की अपील की थी और इसी कड़ी में वह हैदराबाद के निजाम से भी मिले थे।

निजाम से मिलने के बाद दोनों के बीच काफी गहन वार्ता हुई और इस वार्ता की पूरी होने के बाद तकरीबन 5000 किलो का सोना निजाम के द्वारा प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करवाया गया था।

हैदराबाद का इतिहास

आंध्र प्रदेश के दो हिस्से हो चले हैं जिसमें पहला है आंध्र और दूसरे तेलंगाना और आज के टाइम में तेलंगाना का हिस्सा हैदराबाद बन चुका है जिसका इतिहास बहुत ही पुराना है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार सबसे पहले काकातीय राजा गणपति इसके ऊपर शासन करते थे और उनके शासन के बाद 14वी शताब्दी के आसपास में कुछ मुस्लिम शासकों ने इसके ऊपर अपना अधिकार जमा लिया था। 

इसके बाद साल 1591 में कुतुब शाही वंश के पांचवे सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने अपनी राजधानी को गोलकुंडा से हटा लिया और उन्होंने अपनी नई राजधानी को मुसी नदी के दक्षिणी तट के पास बसाया जिसे वर्तमान के समय में हैदराबाद के नाम से जाना जाता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि कुतुब शाह की एक प्रेमिका थी जिसका नाम भागमती था और उन्होंने अपनी प्रेमिका के नाम पर ही हैदराबाद में पाटशीला नाम की जगह को भागनगर नाम दिया था.

आगे चलकर के कुतुब शाह ने भागमती को हैदर मिल की उपाधि दी थी और आगे चलकर के यही नाम हैदराबाद में तब्दील हो गया।

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