संत पीपा जयंती 2023 Sant peepa Pipa Jayanti History Story In Hindi: संत पीपाजी या पीपा बैरागी या पिपानंद आचार्य के नाम से भी जाना जाता है, एक रहस्यवादी कवि थे, राजपूत शासक संत हुए वह भगवान के भक्त राजा, गुरुमुख और गुरु मत के समर्थक थे.
संत पीपा महाराज की 698 जयंती इस वर्ष 6 अप्रेल को मनाई जाएगी. वे एक सफल शासक तथा बाद में संत बने उनके वचन शिक्षाओं व बाणी का संकलन श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में सम्मिलित हैं.
Sant Pipa Jayanti History Story In Hindi

संत पीपा जी जयंती 2023 में 700 वां जन्म महोत्सव व जयंती मनाई जा रही हैं. . राजस्थान समेत देश के कई राज्यों में लोगों में श्रद्धा और उत्साह के साथ संत पीपा जी की जयंती को मनाया.
जगह जगह पीपा जी की झांकिया, प्रतियोगिताएं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा हैं.
संत पीपा जयंती 2023 जीवन परिचय इतिहास जीवनी
विक्रम संवत १३८० को भक्तराज पीपाजी का जन्म राजस्थान के कोटा जिले से 45 मील की दूरी पर स्थित गागरोन (झालावाड़) में हुआ था. वे गागरोन के खीची चौहान के वंशज थे.
हिन्दू पंचाग के अनुसार पीपा का जन्म पीपानन्दाचार्य जी का जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिम, बुधवार विक्रम संवत १३८० तदनुसार दिनांक २३ अप्रैल १३२३ को हुआ, इस कारण 6 अप्रैल को उनकी जयंती मनाई जाती हैं.
मान्यताओं के अनुसार राजपरिवार में जन्म लेने वाले बालक प्रतापराव खींची का बालपन से ही आध्यात्म के प्रति गहरा झुकाव था. बताया जाता हैं कि उनमें दैवीय शक्तियाँ थी जिससे वे अपने कुल की देवी से साक्षात संवाद करते थे.
इतिहास में पीपाजी की गिनती गागरोन के सफल शासकों में की जाती हैं. वर्ष 1400 में पिताजी के देहांत के बाद वे गागरोन के शासक बने. अपने राज्यकाल में इन्होने फिरोजशाह तुगलक, मलिक जर्दफिरोज व लल्लन पठान जैसे शासकों से युद्ध कर उन्हें पराजित भी किया.
जैतपाल पीपा जी के पिता थे. इनकी मृत्यु के बाद ये मालवा-गागरोन के शासक बने. राजाजों की राजसी परम्परा के अनुसार उनके 16 रानियाँ थी, वे राज्य सुख भोगने वाले एक गृहस्थी शासक होने के साथ माँ भवानी के सच्चे साधक भी थे.
अपने महल के परिसर में देवी की प्रतिमा भी थी, जिनसे वे अक्सर संवाद किया करते थे. बताया जाता हैं कि माँ ने एक बार उन्हें स्वप्न में आकर काशी जाकर रामानंद जी की दीक्षा लेकर भक्ति की राह पर जाने का संदेश दिया.
जब पीपा काशी गये तो उन्हें तड़क भड़क की वेशभूषा देखकर रामानंद जी ने अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया. इस पर उन्होंने अपने वस्त्र त्याग कर साधू का वेश धारण किया तथा दीक्षा प्राप्त की. दीक्षा के बाद वे रामानंद जी को गागरोन आने का न्योता देकर वापिस आ गये तथा एक साधू की तरह जीवन बिताने लगे.
प्रतापराय से संत पीपा बनने की कहानी
स्वामी रामानंद से उन्होंने गुरुदीक्षा लेने के बाद उन्हें गागरोन आने का आमंत्रण दिया. कुछ समय बाद रामानंद जी कई शिष्यों जिनमें कबीर व रैदास भी थे, उनके साथ गागरोन आए. राजा प्रतापराय ने उनका खूब आदर सत्कार किया. अपने कन्धो पर पालकी में बैठाकर वे महल लेकर आए.
रामानंद जी ने राजा प्रतापराय को उपदेश दिया कि ‘‘हे शिष्य, तू लोक हित के लिए प्रेम रस ‘पी‘ और दूसरों को भी ‘पा‘ अर्थात पिला।‘‘ राजा प्रताप राज्य ने इन्ही दो शब्दों पी और पा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और अपना नाम पीपा रख दिया, इसके बाद वे संत पीपा के रूप में जाने गये.
संत पीपा की साधना भक्ति व जीवन का अंतिम पड़ाव
ऐसा माना जाता हैं कि संत पीपा गुरु नानक के समकालीन थे तथा वे आपस में मिलते भी थे. इन्होने अपने जीवन के अंतिम समय में स्वयं को ईश्वर की भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया.
राजदरबार का त्याग कर अपनी प्रिय पत्नी सीता जो भक्ति के स्वभाव की थी अपने साथ लेकर द्वारिका गुजरात की ओर चल दिए. जहाँ भगवान कृष्ण ने अपना अंतिम समय बिताया था. द्वारिका के पहाड़ों की एक गुफा में पीपाजी भक्ति करते थे तथा दिन के एक समय समुद्र तट पर स्थित कृष्ण जी के मन्दिर में जाते थे.
वे भक्ति में गीत भजन गाते तथा कुछ लिखते भी थे. वे गरीबों को खाना खिलाने तथा ईश्वर भक्ति का प्रचार करने लगे. जीवन के अंतिम पड़ाव में पीपाजी की भक्ति में बड़ा परिवर्तन आया
वे सगुण उपासक के नानक व कबीर की तरह निर्गुण उपासक बन गये, उनका मानना था कि ईश्वर के स्मरण के लिए मूर्ति की स्थापना तथा अगरबत्ती तथा दीपक जलाने की कोई आवश्यकता नहीं हैं.
संत पीपाजी महाराज का इतिहास (History of Saint Pipaji Maharaj)
संत पीपा का जन्म कहाँ हुआ गागरोन दुर्ग में लोक संत पीपाजी के गुरु का नाम रामानंद था. गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा २७ पद, १५४ साखियां, चितावणि व क-कहारा जोग ग्रंथ इनके द्वारा रचित संत साहित्य निधियां रही.
एक शासक होने के उपरान्त भी लोगों में ईश्वर भक्ति का भाव जगाने वाले पीपाजी राजस्थान के मान्य लोक संत रहे हैं संत बनने के बाद इन्होने अपनी पोशाक स्वयं सिली थी इस कारण दर्जी समाज इन्हें अपना आराध्य देव मानते हैं.
अशोक के बाद पीपाजी दुसरे शासक थे जिन्होंने युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर राज्य का त्याग कर लिया. फिरोजशाह तुगलक के साथ इन्होने युद्ध किया स्वामी रामानंद के 12 प्रधान शिष्यों में स्थान पाकर संत कबीर के गुरुभाई बनेपाखंडों तथा आडम्बरों के विरोध में पीपाजी के कबीर का खुलकर साथ दिया. राजस्थान के महान लोकसंत के रूप में आज भी उन्हें याद किया जाता हैं.
संत पीपाजी के दोहे (sant pipa ke dohe)
जो ब्रहमंडे सोई पिंडे, जो खोजे सो पावै।
पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥1॥
काया देवा काया देवल, काया जंगम जाती।
काया धूप दीप नइबेदा, काया पूजा पाती॥2॥
काया के बहुखंड खोजते, नवनिधि तामें पाई।
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो, रामजी की दुहाई॥3॥
अनत न जाऊं राजा राम की दुहाई।
कायागढ़ खोजता मैं नौ निधि पाई॥4॥
हाथां सै उद्यम करैं, मुख सौ ऊचरै राम।
पीपा सांधा रो धरम, रोम रमारै राम॥5॥
उण उजियारे दीप की, सब जग फैली ज्योत।
पीपा अन्तर नैण सौ, मन उजियारा होत॥6॥
पीपा जिनके मन कपट, तन पर उजरो भेस।
तिनकौ मुख कारौ करौ, संत जना के लेख॥7॥
जहा पड़दा तही पाप, बिन पडदै पावै नही।
जहां हरि आपै आप, पीपा तहां पड़दौ किसौ॥8॥