डॉ पंचानन माहेश्वरी का जीवन परिचय Panchanan Maheshwari Biography In Hindi: माहेश्वरी भारत के सुप्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी थे. भ्रूणविज्ञान और पादप क्रियाविज्ञान की एक संयुक्त शाखा का इन्होने विकास किया था.
इन्हें रॉयल सोसायटी लंदन ने टिशू कल्चर लेब और टेस्ट ट्यूब कल्चर पर शोध के लिए फेलोशिप भी दी. पंचानन माहेश्वरी ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया, इन्हें कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं.
डॉ पंचानन माहेश्वरी का जीवन परिचय

पूरा नाम | पंचानन माहेश्वरी |
जन्म | 9 नवम्बर, 1904 |
जन्म भूमि | जयपुर, राजस्थान |
मृत्यु | 18 मई, 1966 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | वनस्पति विज्ञानी |
विद्यालय | इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
पंचानन माहेश्वरी भारतीय वनस्पति विज्ञानी थे. इनका जन्म 9 नवम्बर 1904 को जयपुर में हुआ था. डॉ माहेश्वरी ने इलाह बाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और आगरा कॉलेज से अध्यापन कार्य आरम्भ किया.
इसके बाद इन्होंने इलाहबाद, लखनऊ व ढाका विश्वविद्यालयों में भी अध्यापन का कार्य किया. 1948 में डॉ माहेश्वरी दिल्ली वनस्पति विज्ञान के अध्यक्ष होकर आ गये. डॉ माहेश्वरी ने पादप भ्रूण विज्ञान पर विशेष कार्य किया.
इन्होने भ्रूण विज्ञान और पादप क्रिया विज्ञान के सहमिश्रण से एक नई शाखा का विकास किया एवं इससे फूलों के विभिन्न भागों की कृत्रिम पोषण द्वारा वृद्धि कराने में पर्याप्त सफलता हासिल की.
इनके अधीन शोध कार्य करने वाले केवल भारतीय ही नहीं बल्कि अमेरिका, अर्जेंटीना व ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के छात्र भी आते थे. इनके मार्गदर्शन में लगभग 60 छात्रों ने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
डॉ माहेश्वरी ने अपने विषय के अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया. टिशु कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना तथा टेस्ट ट्यूब कल्चर पर शोध के लिए लंदन की रॉयल सोसायटी ने इन्हें अपना फेलो बनाकर सम्मानित किया. 18 मई 1966 को दिल्ली में डॉ माहेश्वरी का निधन हो गया.
डॉ माहेश्वरी ने अपने शोधों को निबंध के जरिये प्रकाशित करवाए अब तक उनके 300 से अधिक निबंध सार्वजनिक हैं. उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी इंट्रोडक्शन टु इंब्रियो-लॉजी ऑव संजियो स्पर्मस् नाम से यह किताब 1950 ई को पब्लिक हुई थी. साहनी जी द्वारा स्थापित बोट्निकल सोसायटी द्वारा इन्हें बीरबल साहनी पुरस्कार खिताब से नवाजा गया.
व्यक्तिगत परिचय
पंचानन महेश्वरी का जन्म राजस्थान की राजधानी जयपुर में 1904 में हुआ था. इनके पिता विजयपाल जी पेशे से एक क्लर्क थे. पारिवारिक स्थिति उतनी अच्छी न होने के बावजूद विजयपाल जी ने इनकी शिक्षा का समुचित प्रबंध किया.
महेश्वरी की शुरूआती शिक्षा जयपुर में ही हुई तथा उच्च शिक्षा के लिए ये इलाहबाद के इविंग क्रिश्चयन कॉलेज में प्रविष्ट हुए. यहाँ से इन्होने बीएससी तथा बाद में इलाहबाद युनिवर्सिटी से ही एमएससी की पढ़ाई की. साल 1923 में शान्ति नामक सुकन्या के साथ इनका विवाह हुआ तथा इनके तीन बेटे व तीन बेटियां भी हुई.
प्रो विनफील्ड डडगन से मुलाकात
जब पंचानन महेश्वरी इलाहबाद से एमएससी कर रहे थे तब इनकी मुलाक़ात भारतीय वनस्पति विज्ञान संस्थान के संस्थापक प्रो विनफील्ड डडगन से हुई. एक छात्र के रूप में महेश्वरी की प्रतिभा को पहचानते उन्हें देर नहीं लगी.
एमएससी करने के बाद प्रो विनफील्ड डडगन के मार्गदर्शन में ही इन्होने शोध कार्य की शुरुआत की तथा 1927 से 1930 तक वे इस कार्य में पूरी सिद्दत से लगे रहे. साल 1931 में प्रोफेसर साहब के निर्देशन में ही पंचानन जी ने एंजियोस्पर्म के क्षेत्र में शोध करते हुए डीएससी की डिग्री हासिल की.
एक लम्बे अरसे तक साथ साथ काम करने के बाद पंचानन महेश्वरी और प्रोफेसर डडगन में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गये, दोनों के बीच गुरु शिष्य से बढ़कर पिता पुत्र की तरह सम्बन्ध थे. एक बार की बात हैं जब महेश्वरी ने अपनी डीएससी की डिग्री हासिल कर ली तो अपने गुरु के चरणों में इसे रख दिया.
तथा अपने गुरु से गुरु दक्षिणा मांगने की जिद्द करने लगे. इस पर प्रोफेसर डडगन ने कहा तुम मेरे बेटे समान हो, मेरे लिए गुरु दक्षिणा यही होगी, जिस तरह एक शिष्य की तरह मैंने आपके साथ व्यवहार किया. ठीक इसी तरह अपने शिष्यों के साथ तुम भी बर्ताव करोगे.
करियर सम्मान व पुस्तकें
उच्च शिक्षा पूरी करने के पश्चात पंचानन महेश्वरी जी ने आगरा के कॉलेज में लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, अपने इस सफर में इन्होने इविंग, इलाहबाद और लखनऊ कॉलेज में भी एक प्रोफेसर के रूप में टीचिंग करवाई.
साल 1939 आते आते ये ढाका युनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं देने लगे. भारत विभाजन के बाद ये पुनः भारत आ गये तथा साल 1949 में दिल्ली युनिवर्सिटी के वनस्पति शास्त्र के हेड बना दिए गये, इसी पर पर ये जीवन भर रहे.
अगर हम पी महेश्वरी को मिले सम्मान और उपलब्धियों की बात करें तो साल 1965 में लन्दन की रोयल सोसायटी ने इन्हें अपना सदस्य बनाया, वर्ष 1959 में इन्हें भारतीय वनस्पति संस्थान की ओर से बीरबल साहनी सम्मान से नवाजा गया.
इन्हें सुन्दर लाल होरा मैमोरियल पदक भी दिया गया. 1951 में ये भारतीय वनस्पति संघ के अध्यक्ष भी चुने गये, इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय वनस्पति कांग्रेस स्टॉकहोम के उपाध्यक्ष बने.
डॉ महेश्वरी ने वनस्पति शास्त्र के आकृति और भ्रूण विज्ञान के क्षेत्र में कई शोध पत्र प्रकाशित किये, उनके लेख करीब 200 से अधिक पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए.
पंचानन जी ने एंब्रीयोलोजी ऑफ एंजियोस्पमर्स और नीटम तथा मॉफोंलॉजि ऑफ जिमनोस्पमर्स ये दो महत्वपूर्ण रचनाएं भी अपने जीवनकाल के दौरान लिखी.