डॉ जाकिर हुसैन का जीवन परिचय Dr Zakir Hussain Biography in Hindi: डॉ जाकिर हुसैन देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति थे. देश के तीसरे राष्ट्रपति थे.
मुस्लिम सम्रद्ध घराने में जन्मे जाकिर हुसैन ने दो वर्ष के अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल में जामिया मिलिया इस्लामिया (राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय) उनकी प्रमुख देन मानी जाती हैं.
देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति जाकिर (dr zakir hussain in hindi) के बारें में यहाँ विस्तार से जानेगे.
डॉ जाकिर हुसैन का जीवन परिचय Dr Zakir Hussain Biography in Hindi

जाकिर हुसैन के बारे में सामान्य जानकारी बायोग्राफी
पूरा नाम | डॉ. ज़ाकिर हुसैन (Zakir Husain) |
जन्म दिनांक | 8 फ़रवरी, 1897 |
जन्म भूमि | हैदराबाद, आंध्र प्रदेश |
मृत्यु | 3 मई, 1969, दिल्ली |
पिता का नाम | फ़िदा हुसैन खान |
माता का नाम | नाजनीन बेगम |
पत्नी | शाहजेहन बेगम |
कर्म-क्षेत्र | शिक्षाविद, भारत के तीसरे राष्ट्रपति |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | पी.एच.डी |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न (1963), पद्म विभूषण (1954) |
Zakir Hussain Biography In Hindi
डॉ जाकिर हुसैन एक प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी व महान शिक्षाशास्त्री थे. इनका जन्म फरवरी 1897 में हैदराबाद में एक अफगानी परिवार में हुआ था. 1913 में इटावा में इस्लामिया हाइस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज में प्रवेश लिया.
जाकिर हुसैन अपने समय के मेधावी विद्यार्थी थे तथा साथ ही साथ अन्य कार्यकलापों में भी असाधारण रूप से उनकी प्रतिभा का निखार देखने को मिलता था.
जाकिर हुसैन का राजनैतिक जीवन 1920 में शुरू हुआ तथा गांधी के आव्हान पर 1921 के असहयोग आंदोलन में एक वीर सेनानी के रूप में अपने आपकों देश की आजादी के पथ पर समर्पित कर दिया व शिक्षा संस्थान के अध्ययन से अलग कर दिया.
गांधी के मिशन से गहरे रूप से प्रभावित होने के बाद राष्ट्रीय शिक्षा के केंद्रीय विकास के लिए कुछ विद्यार्थियों व अध्यापकों की मदद से एक संस्थान की स्थापना की जो कि बाद जामिया मिलिया इस्लामिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
1923 में वे उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए जर्मनी गये तथा 1926 में बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डायरेक्ट की डिग्री प्राप्त की. जर्मनी में अपनी अंतिम यात्रा के दौरान जाकिर हुसैन जामिया के साथ भी सम्पर्क में रहे और घनिष्ठ रूप में उसके विकास के लिए प्रयास करते रहे.
1926 में भारत वापिस आने पर 29 वर्ष की अवस्था में विश्वविद्यालय के उप कुलपति के पद पर नियुक्त किये गये . उनके कैप्टनशिप के अंतर्गत उन्होंने जामिया को उच्च शिखर पर पहुंचाया, जिसके परिणामस्वरूप इस विश्वविद्यालय ने विश्व के शिक्षाशास्त्रियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.
1937 में उन्होंने वर्धा में राष्ट्रीय योजना सम्मेलन में भाग लिया.जाकिर हुसैन को प्रारम्भिक राष्ट्रीय शिक्षा योजना का विस्तार प्रारूप बड़े स्वागत के साथ स्वीकृत कर लिया गया.
इसके साथ ही साथ जाकिर हुसैन ने प्रारम्भिकशिक्षा के प्रचार की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. 1948 में उन्हें सर्वसम्मति से युनिवर्सिटी कोर्ट द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का उप कुलपति नियुक्त किया गया.
1948 में उन्हें भारतीय विश्वविद्यालय आयोग का एक प्रतिष्ठित सदस्य नियुक्त किया गया. शिक्षा के क्षेत्र में उनके प्रतिभा युक्त कार्यों को देखते हुए यूनेस्को के प्रशासनिक बोर्ड में एक सदस्य के रूप में नियुक्त किये गये. वह भारतीय प्रेस आयोग अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा सेवा तथा सीबीएसई आदि से भी जुड़े रहे.
डॉ जाकिर हुसैन 1952 व 1956 में दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे. 1957 में उन्हें राज्यपाल नियुक्त किया गया था. 1962 में उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति पद पर नियुक्त किया गया. 1967 में उन्हें देश के राष्ट्रपति पद नियुक्त किया गया. उनका देहांत 3 मई 1969 को उस पद पर रहते ही हो गया.
डॉ जाकिर हुसैन ने प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक तथा एडविन कैनन की पुस्तक इलिमेट्री पोलिटिकल इकोनोमी का अनुवाद किया उन्होंने जर्मन भाषा में पुस्तक लिखी डाई बोट्स चाफ्ट्डेस महात्मा गांधी.
उनके बहुत से भाषणों का संकलित जो कि भिन्न भिन्न सभाओं व अधिवेशन में दिया. का संकलन रूप डायनामिक युनिवर्सिटी नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ. उन्होंने बच्चों के लिए बहुत सी छोटी छोटी कहानियां उपनाम या छदम नाम से लिखी. उनमें से एक था रककैया रेहाना.
एक महान शिक्षाशास्त्री के रूप में वह इस बात पर जोर देकर कहते थे कि प्रारम्भिक शिक्षा के आधार पर ही एक बच्चें के लिए चहुंमुखी विकास किया जा सकता हैं.
इस बात के भी प्रबल रूप से समर्थक थे कि धर्म निरपेक्षता के मार्ग पर चलते हुए ही देश में साम्प्रदायिकता पूर्ण राजनीति व व्यवहार से छुटकारा पाया जा सकता हैं.
डॉ जाकिर हुसैन का आध्यात्मिक दर्शन के ज्ञान का भी कोई जवाब नही जिसके चलते उसकी जिन्दगी भी सूफी संतो के अनुरूप रही.
राष्ट्र को पूर्णरूपेण समर्पित मानवीय गुणों के इस चितेरे को 1963 में भारत रत्न के पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना
असहयोग आंदोलन के दौरान जाकिर हुसैन महात्मा गांधी के साथ थे. उन्ही के कहने पर हुसैन ने अंग्रेजी शिक्षा के बहिष्कार के लिए युवाओं को लामबंद करने की शुरुआत ओरियंटल कॉलेज से की.
जब इनसे पूछा गया कि बच्चें अंग्रेजों के स्कूलों में नहीं पढेगे तो कहा पढेगे तब जाकिर हुसैन ने जवाब दिया था. देश के अपने संस्थान होंगे, जिसमें अंग्रेजों का कोई सहयोग नहीं होगा. उन संस्थानों में अपने लोग ही शिक्षा देगे.
इसी घटना से जामिया मिलिया कॉलेज खोलने के विचार ने जन्म लिया और इस निमित्त हुसैन ने डॉ. हकीम अजमल खान, डॉ. अंसारी और मौलाना मोहम्मद अली अन्य जाने माने लोगो से मुलाक़ात की. आखिर कार 29 अक्टूबर, 1920 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया की नींव जाकिर हुसैन के प्रयासों से रखी गई.
कॉलेज की स्थापना के बड़ा डॉ जाकिर हुसैन ने दो वर्षों तक अध्यापन का कार्य भी किया. वर्ष 1922 में जब ये जर्मनी में उच्च शिक्षा के लिए उस समय जामिया की आर्थिक हालत बिगड़ गई और इसे बंद करने तक की नौबत आ गई.
जर्मनी में रहते हुए हुसैन ने जामिया की स्थिति को सुधारने के प्रयास भी किये परन्तु ज्यादा असरकारक साबित नहीं हुए, जब वे स्वदेश लौटे तो जामिया खस्ता हालात में था. जिस लग्न से उन्होंने यह संस्थान खोला था, उसकी दुदर्शा से गहरा दुःख पंहुचा.
आखिर उन्होंने गांधीजी की सलाह पर जामिया का स्थान्तरण करना ही उचित समझा और अलीगढ से दिल्ली ले आए. यहाँ उन्होंने कड़ी मशक्कत की और 29 वर्षः की आयु में ये जामिया के कुलपति बने.
भारत का राष्ट्रपति का सफ़र – Dr Zakir Hussain Third President of India
भारत की स्वतंत्रता के बाद जाकिर हुसैन ने सक्रिय राजनीति में स्वयं को प्रस्तुत किया. एक शिक्षाविद के रूप में उनकी गहरी पैठ थी. पहली बार वर्ष 1952 में ये राज्यसभा सदस्य बने और 1957 में इन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया.
साल 1962 से 1967 तक इन्होने भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य किया. 1963 में ही हुसैन को भारत रत्न से नवाजा गया , वर्ष 1969 में जाकिर हुसैन भारत के तीसरे एवं पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने. और वर्ष 1969 में हार्ट अटैक से इनकी मौत हो गई.
भारत से बेहद लगाव रखने वाले जाकिर हुसैन ने अपना पूरा जीवन शिक्षा के क्षेत्र में अर्पित कर दी. वे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के बाद भी स्वयं को शिक्षक कहलवाने में गौरवान्वित महसूस करते थे.
जब जाकिर हुसैन देश के तीसरे राष्ट्रपति बने तब उन्होंने शपथ लेते समय कहा था. पूरा भारत मेरा घर और सभी नागरिक मेरे परिवार के सदस्य हैं. देश ने कुछ समय के लिए मुझे अपना नेता चुना हैं.
मैं अपने घर को अधिक मजबूत और सुंदर बनाने के लिए कोशिश करूंगा. यदि इस कोशिश में मुझे सफलता मिलती हैं तो मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानूंगा.
जाकिर हुसैन की मृत्यु
राष्ट्रपति जाकिर हुसैन पद पर रहते हुए मृत्यु को प्राप्त होने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष थे. वर्ष 1969 के शुरूआती दिनों में इनको पहला दिल का दौरा पड़ा था. 26 अप्रैल 1969 के अपने असम दौरे के बाद दिल्ली लौटे तो हुसैन की तबियत काफी खराब थी.
3 मई 1969 को राष्ट्रपति भवन में दिल का दौरा पड़ने से जाकिर हुसैन की मृत्यु हो गई. वी वी गिरी ने उसी दिन राष्ट्रपति के पद की शपथ ली. भारत सरकार ने तेरह दिन का राजकीय अवकाश घोषित किया.
5 मई 1969 को जाकिर हुसैन का अंतिम संस्कार किया गया. इस मौके पर कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष तथा उनके प्रतिनिधि भारत पहुंचे तथा संवेदना व्यक्त की. लाखों लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए. 1971 में हुसैन का मकबरा भी बनाया गया.