नमस्कार दोस्तों आज का निबंध भारत में प्राथमिक शिक्षा पर निबंध Essay On Primary Education In India In Hindi पर दिया गया हैं.
हमारे भारत में प्राइमरी एजुकेशन आरम्भिक शिक्षा की स्थिति पर स्टूडेंट्स के लिए सरल भाषा में निबंध नीचे दिया गया हैं.
भारत में प्राथमिक शिक्षा Essay On Primary Education In India Hindi

प्राथमिक स्तर तक सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करवाना अभी भारत भी भारत में एक चुनौती बना हुआ हैं.
सरकारी और निजी विद्यालयों द्वारा शिक्षा प्रदान करने का एक संयुक्त सिस्टम दुनिया की सबसे बड़ी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली हैं.
भारत सरकार निरंतर प्राथमिक शिक्षा में सुधार और बच्चों के प्रवेश प्रतिशत बढाने की तरफ ध्यान दे रही हैं. भारत की 1991 की जनगणना के अनुसार, 6 से 14 वर्ष की आयु के कम से कम 3.5 करोड़ बालक अभी भी शिक्षा से वंचित थे.
एक अन्य आकंडे के मुताबिक़ कक्षा एक में प्रवेश पाने वाले 40 फीसदी छात्र ही प्राथमिक शिक्षा पूर्ण कर पाते थे. अशिक्षित रहने वाले बालकों में सर्वाधिक संख्या लड़कियों की थी.
निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार 2009 में 6 से 14 वर्ष के सभी लड़के लड़कियों को बुनियादी शिक्षा अनिवार्य रूप से देने की व्यवस्था की हैं. सरकार तथा शिक्षा विभाग निरंतर क्तिगत कौशल, उनकी समझ, भाषागत योग्यता, रचनात्मकता पर अधिक ध्यान दे रही हैं.
भारत में प्राथमिक शिक्षा को सभी वर्गों के बालकों के लिए सुलभ बनाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान लागू किया गया.
कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त सर्वव्याप्त, सुलभ पहुँच व उसका प्रतिधारण, शिक्षा में लिंग व सामाजिक ऊँच-नीच के अंतर को समाप्त करने का प्रयास किया गया हैं.
भारत संसार की दूसरी सबसे बड़ी जन आबादी वाला देश हैं. साथ ही बेहद चिंताजनक तथ्य यह भी हैं कि भारत में दूनिया की सर्वाधिक निरक्षर आबादी वास करती हैं.
भारत के गुलामी के दौर को लोगों की आर्थिक और शैक्षिक बदहाली की जिम्मेदार थी, मगर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने तेजी से आर्थिक जगत व शिक्षा क्षेत्र में उन्नति की हैं. आज माजरा यह हैं कि दुनियां के लगभग अधिकतर देशों में उच्च पदों पर भारतीयों का कब्जा हैं.
तीन दशक पहले तक शिक्षा व्यवस्था बेहद नाजुक हालत में थी. गाँवों में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी पढने के लिए बड़े शहरों में जाना पड़ता था. गाँव में चंद गिने चुने लोग ही पढ़े लिखे हुआ करते थे.
किसी को पत्र पढवाना हो तो गाँव के पंडित जी या पढ़े लिखे व्यक्ति के पास जाना पड़ता था. अंग्रेजी की ABCD तो पढ़े लिखे तक नहीं जानते थे.
सरकार ने समय समय पर शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए प्रयास जारी रखे. शिक्षा के क्षेत्र में योजनाएं व कार्यक्रम चलाए. सर्व शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, मिड डे मील, शिक्षा का अधिकार, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 आदि.
इन सब के बावजूद शिक्षा की साक्षरता दर के उच्च लक्ष्यों को प्राप्त न कर सके. मूलरूप से बेरोजगारी व गरीबी की समस्या के चलते भारत में शैक्षिक पिछड़े पन को जल्द से समाप्त नहीं किया जा सका.
प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर निरंतर प्रयास जारी हैं. जन जन तक शिक्षा के महत्व तथा समाज की उन्नति में शिक्षा के योगदान को प्रसारित कर जागरूकता बढाने के प्रयास चल रहे हैं.
केरल, तमिलनाडु तथा दिल्ली में शिक्षा का अधिकार कानून पारित होने के बाद व्यापक सुधार देखने को मिला हैं. वही राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा झारखंड जैसे राज्यों में अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं.
आजादी के बाद 1986 में शिक्षा नीति जारी की गई, छः वर्ष बाद 1992 में इसकी समीक्षा की गयी और उस समय यह सुझाव दिया गया कि जब तक प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष योजना नहीं बनाई जाएगी तब तक देश के प्रत्येक बालक तक शिक्षा को पहुचाना सम्भव नहीं होगा.
प्राथमिक शिक्षा की चुनौतियां (Challenges Of primary education system in india)
साक्षरता भी भारत का स्थान विश्व तालिका में निम्न देशों में होता हैं. चीन, श्रीलंका, म्यांमा, ईरान आदि पड़ोसी देशों से हमारी शिक्षा बुरी स्थिति में हैं.
2010 में देशभर में लागू किये गये अनिवार्य शिक्षा का अधिकार भी अपने लक्ष्य से विचलित नजर आता हैं. अधिनियम में कहा गया कि आगामी दस वर्षों में 90 प्रतिशत बालकों को स्कूल से जोड़ा जाएगा. ड्राप आउट की रेट 95 प्रतिशत की गिरावट के वायदे भी धत्ते ही साबित हो रहे हैं.
प्राथमिक शिक्षा तथा उच्च प्राथमिक के लिए शिक्षा माध्यम लम्बे समय तक विवाद का विषय रहा हैं. प्राथमिक शिक्षा को मातृ भाषा में तथा उच्चतर शिक्षा में अंग्रेजी को शामिल किये जाने के विषय पर सरकारी तंत्र के विद्यालयों तथा निजी विद्यालयों के बीच की खाई और अधिक गहरी हुई हैं.
भारत की आजादी के समय साक्षरता दर मात्र 12 प्रतिशत थी जो अंतिम जनगणना के अनुसार 74 फीसदी तक पहुच गई हैं. इस तरह यह छः गुणा तो बढ़ी है मगर अभी भी औसत विश्व साक्षरता से कम हैं.
पिछड़े दशक में भारत की साक्षरता वृद्धि दर 9 प्रतिशत थी. एक शोध के मुताबिक़ बड़ी संख्या में बालक स्कूल आते हैं मगर उचित व्यवस्था के अभाव में शीत वर्षा तथा गर्मी के चलते ये स्कूल छोड़ देते हैं.
देश के अधिकतर प्राथमिक विद्यालय ऐसे है वहां पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं हैं अगर है भी तो जल की गुणवत्ता बेहद निम्न स्तरीय हैं. अब जाकर स्कूलों में शौचालय नसीब हो पाए हैं.
एक बड़ी संख्या के विद्यालयों में कोई अध्यापक जी नहीं है और नियुक्त भी किये गये है तो वे नियमित रूप से स्कूल नहीं आते हैं. उनका शैक्षिक स्तर बेहद कमजोर है जिसके चलते बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ हैं.