Essay On Shopkeeper In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम दुकानदार पर निबंध लेकर आए हैं. यह वह व्यवसायी होता है जिससे हमारा पाला बहुत बार पड़ता हैं. सभी लोगों से भिन्न इनके स्वभाव होते हैं.
दुकानदार निबंध, भाषण, स्पीच, अनुच्छेद ,लेख, आर्टिकल में हम जानेगे कि दुकान दार का अर्थ कार्य, स्वभाव, जीवन शैली आदि को समझेगे.
Essay On Shopkeeper In Hindi

300 शब्द : दुकानदार
किसी भी प्रकार की चीज को दुकान के माध्यम से बेचने वाले व्यक्ति को ही दुकानदार कहा जाता है। दुकानदार विभिन्न प्रकार की दुकान करता है। कुछ दुकानदार किराने की दुकान करते हैं तो कुछ दुकानदार हार्डवेयर की दुकान करते हैं तो कुछ दुकानदार खाने पीने की वस्तुओं को बेचने की दुकान करते हैं।
दुकानदार के द्वारा दुकान चालू करने का एक निश्चित समय तय किया जाता है और वह उसी निश्चित समय पर दुकान चालू करता है और निश्चित समय पर दुकान बंद कर देता है। हालांकि कभी-कभी अधिक ग्राहकों की भीड़ होने की वजह से दुकानदार को दुकान जल्दी चालू करनी पड़ती है और देर रात होने के बाद बंद करनी पड़ती है।
कुछ दुकानदार स्वभाव के बहुत ही अच्छे होते हैं और वह अपनी दुकान पर आने वाले ग्राहक से अच्छा व्यवहार करते हैं और ग्राहक से प्यार से बात करते हैं, क्योंकि ऐसे दुकानदारों को पता है कि अगर वह ग्राहकों को संतुष्ट करेंगे तो ही उनके दुकान पर अधिक ग्राहक आएंगे और उनकी अधिक बिक्री होगी।
वही कुछ दुकानदार ऐसे होते हैं जो स्वभाव से बहुत ही अड़ियल होते हैं। ऐसे दुकानदार की दुकान पर एक बार ग्राहक जाने के पश्चात दोबारा जाना उचित नहीं समझता है और ऐसे दुकानदारों की दुकान पर कम भीड़ होती है।
जो अनुभवी दुकानदार होते हैं उन्हें यह पता होता है कि अच्छा व्यवहार और उचित सामान दे करके वह अपनी दुकान के साथ ग्राहकों को बांध सकते हैं जिससे ग्राहक भी उनकी दुकान पर लगातार आते रहते हैं और दुकानदार के सामान की अधिक बिक्री होती रहती है।
हर दुकानदार अपनी अपनी पसंद के हिसाब से अपनी दुकान का नाम रखता है। कोई किसी धार्मिक देवी देवता के नाम पर दुकान का नाम रखता है तो कोई दुकानदार अपने ही नाम पर अपनी दुकान का नाम रखता है।
हर दुकानदार का एक ही लक्ष्य होता है कि उसकी दुकान पर अधिक से अधिक ग्राहक आए ताकि उसके सामान की बिक्री अधिक से अधिक हो और वह ज्यादा आय अर्जित करें।
दुकानदार पर निबंध 600 शब्द
हमारे देश के प्रत्येक गाँव, शहर की गली नुक्कड पर छोटी बड़ी किराणे की दूकान मिल जाती हैं. सामान्यतः सभी प्रोविजन स्टोर का लुक एक सा ही होता है.
बाहरी लोकर डिब्बों में भरी चोकलेट, नमकीन और आस पास टंगे छोटे बड़े पैकेट ऊपर की ओर झूल रही गुटके, शेम्पू, नमकीन, आंवला की पुड़ियाँ, एक तुला और इसके पास खड़ा एक इन्सान जो अक्सर हिसाब के चक्कर में कहीं खोया हुआ प्रतीत होता है इसे दुकानदार कहा जाता हैं.
आँखों पर लगा चश्मा, चेहरे पर थकान के भाव और विचारों की उधेड़बुन में लगा दुकानदार हमारे समाज का महत्वपूर्ण सदस्य होता हैं, सर्दी, गर्मी बरसात कैसा भी मौसम हो वह अपनी सेवा के लिए सदैव तत्पर रहता हैं.
अक्सर सभी दुकानदारों का स्वभाव एक जैसा ही होता है, बेशर्त वह दूकान का मालिक हो. कम सुनने व देखना जबकि अधिक बोलना, मुहफट होना, जीवन के हरेक काम में हिसाब किताब लगाना, नकली मुस्कान सजाना, अच्छे शब्दों में किसी की इज्जत उतारने के गुण दुकानदार से सीखे जा सकते हैं.
किसी महाशय ने दुकानदार पर तंज करते हुए कहा कि जब सौ चालाक लोग मरते है तो एक दुकानदार का जन्म होता हैं, असल में बहुत से लोग इससे इत्तेफाक भी रखेगे. क्योंकि यह व्यवसाय इस तरह का है जिसमें घुसा एक शरीफ दिलदार इन्सान भी कुछ समय बाद चालाक लोमड़ी बन जाता हैं.
ऐसे स्वभाव का निर्माण हो भी क्यों न जब 10 रूपये की एक वस्तु के पीछे उसे 50 पैसे का फायदा मिले, महीनों तक उसे सभालकर रखना, अपनी दुकान का किराया भरना आदि जो वहन करता हैं.
सैकड़ो तरह की खाने पीने की चीजों के बीच भरी दुपहरी में घर के टिफिन का इन्तजार करने वाला दुकानदार ही होता हैं उसे अपने मन व जीभ के चटोरी होने से बचाना पड़ता है अन्यथा उसकी पूरी रातों के सपनों का हिसाब किताब चंद दिनों में ही चट हो जाता हैं.
ऐसा नहीं है कि बहुत से लोग दुकानदारों को पसंद नहीं करते हैं, जबकि यह बात दुकानदार पर भी लागू होती हैं वे विशेष रूप से दो तरह के लोगों को देखना तक पसंद नहीं करते हैं.
पहला है उधार सामान ले जाने वाला. दुकानदारी और उधारी दोनों विपरीत चीजे हैं. यदि दोनों का मिलन कुछ समय तक होता है तो निश्चय ही एक को अपनी बोरी बिस्तर समेटने पड़ते हैं, इस तुलना में बहुत सम्भव है दूकान अधिक दिनों तक नहीं टिक पाती हैं.
इसलिए दुकानदारों द्वारा उधार सामान मांगने वाले ग्राहकों से चिढना स्वाभाविक हैं. इसलिए ये अपनी दुकानों पर बड़े अक्षरों में लिखवाते है आज रोकड़ कल उधार, उधार प्रेम की कैंची हैं वगैरह वगैरह.
दूसरे तरह के वे लोग जो खाने के बेहद शौकीन होते है मतलब चटोरी. जब भी कही जाते है चाहे सब्जी के ठेले पर, कुछ लेना हो या न हो, बस चीजे चखने का मानों उसके पास टेंडर है और अपने स्वाद का नमूना उन्हें आगे लेबोरेटरी तक रेफर करना हो,
जब ये लोग किसी दुकान में प्रविष्ट होते है तो मानों लोमड़ी अंगूरों के खेत में आई हो. ले चट दे चट. दुकानदार चाहकर भी उन्हें न टोक सकता है न बाहर निकाल सकता हैं.
दुनियां में अलग अलग मिजाज के लोग होते है बस वैसे दुकानदार भी होते हैं. कुछ बेहद मिलनसार, हंसकर बात करने वाले, किसी राहगीर को राह, बस या घर का ठिकाने बताने वाले, बच्चों को चाकलेट देने वाले स्वभाव के भी होते हैं.
बहरहाल जो भी हो दुकानदार हमारी अर्थव्यवस्था और बाजार की महत्वपूर्ण कड़ी हैं जिसकें न होने की कल्पना भी बेकार हैं. स्थायी दूकान रखने वाले लोगों से मोहल्ले वालों का मित्रवत एवं स्नेही व्यवहार भी होता हैं. एक दूसरे के सुख दुःख में काम आते हैं.