Essay On Freedom Of Speech In Hindi अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध : हमारा भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं, हमारा संविधान नागरिकों को कई प्रकार के मौलिक अधिकार देता है जिनमें समानता, स्वतंत्रता, धार्मिक आजादी और अभिव्यक्ति की आजादी मुख्य हैं.
आज के निबंध में हम फ्रीडम ऑफ़ स्पीच क्या है इसके पक्ष विपक्ष में तर्क वितर्क आलोचना आदि बिन्दुओं को जानेगे.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध Essay On Freedom Of Speech In Hindi

नवजात शिशु का क्रन्दन बाहरी दुनियां के प्रति उसकी प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति हैं. अभिव्यक्ति की इच्छा किसी व्यक्ति की भावनाओं, कल्पनाओं एवं चिन्तन से प्रेरित हैं और अपनी अपनी क्षमता के अनुरूप होती हैं.
अपनी भावना या मत को अभिव्यक्त करने की आकांक्षा कभी कभी इतनी मजबूत बन जाती हैं कि व्यक्ति अकेला होने पर भी खुद से बात करने लगता हैं, मगर अभिव्यक्ति की निर्दोषता और सदोषता का प्रश्न तभी उठता हैं, जब अभिव्यक्ति बातचीत का रूप लेती हैं व्यक्तियों के बीच या समूहों के बीच.
हमारे मौलिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी का मौलिक अधिकार शामिल किया गया हैं. इसका सरल सा अर्थ यह है कि हम अपने हक हकूक के लिए आवाज उठा सकते हैं.
अपने खिलाफ हो रहे अन्याय का खुलकर प्रतिरोध कर सकते हैं. बोलने की आजादी का दायरा भी सिमित रखा गया हैं, हम केवल मर्यादा में बने रहकर ही आवाज उठा सकते हैं.
अभिव्यक्ति की आजादी की उत्पत्ति
अगर थोड़ा अतीत में झांके तो बोलने की आजादी की सबसे पहले मांग इंग्लैंड में की गई थी, तदोपरांत वहां वर्ष 1689 में मौलिक अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी को मान्यता मिली.
इस स्वतंत्रता के तहत सभी नागरिकों को अपने विचारों और भावनाओं को बिना शासकीय बंदिश के अभिव्यक्त करने की पूर्णरूपेण आजादी प्रदान की गई हैं.
यह अधिकार उसे लिखित मुद्रित रूप में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की आजादी देता हैं. अन्य मौलिक अधिकारों की भांति इसके उल्लंघन की स्थिति में व्यक्ति कोर्ट जा सकता हैं.
भारतीय संविधान के मूल अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को सार्वभौमिक रूप से सर्वसहमति से स्वीकार किया गया था.
बोलने की आजादी की सीमाएं
वैसे तो प्रत्येक संवैधानिक अधिकार के साथ कुछ उपबन्ध बनाए गये हैं जो ये सीमा निर्धारित करते है कि किस हद तक उस अधिकार का उपयोग मर्यादापूर्ण हैं. देश के संविधान का अनुच्छेद 21 अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी देता हैं मगर कुछ युक्तियुक्त निर्बंधनों के साथ.
वो इस तरह की अगर एक इंसान की अभिव्यक्ति की आजादी का प्रभाव देश की एकता अखंडता और सम्प्रभुता को प्रभावित करने वाला हो तो अथवा सामाजिक सौहार्द, न्यायालय की अवमानना से जुड़ा हो तो उसे प्रतिबंधित किया गया हैं.
बोलने की आजादी के नाम पर किसी को गाली देने अथवा अपमानित करने की वकालत भारतीय संविधान नहीं करता हैं.
अभिव्यक्ति की आजादी जरूरत क्यों है?
मनुष्य अन्य सभी जीवों की तुलना में इसलिए श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनके पास विचार करने की शक्ति हैं तथा वह अपने भावों को किसी भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करने में समक्ष हैं. समतामूलक समाज में यह आवश्यक हो जाता हैं कि प्रत्येक नागरिक को अपनी बात कहने का अधिकार हो.
राजशाही में इनकी अवहेलना की जाती थी, अत्याचार के खिलाफ बोलने वालों को डरा धमका कर चुप करा दिया जाता था. मगर आधुनिक लोकतांत्रिक समाज के समुचित विकास के लिए नागरिकों को सर्वांगीण विकास के मौके उपलब्ध कराने में अभिव्यक्ति की आजादी एक बड़ा पहलू हैं जो हर हालत में उपलब्ध होना ही चाहिए.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बदौलत ही दूसरों के विचारों को समझने उन पर चर्चा और आम सहमति बन सकती हैं, यही लोकतंत्र का बुनियादी आधार हैं.
राजनैतिक पार्टी हो या समाज जहाँ विभिन्नताएं है स्वभाविक हैं विचारों में भी अलग अलग राय हो सकती हैं अतः सभी को अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार दिए बिना समाज व देश की तरक्की नहीं की जा सकती.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग
अन्य संवैधानिक अधिकारों की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के भी दुरूपयोग की पर्याप्त सम्भावनाएं रहती हैं. इसकी बड़ी वजह यह हैं कि बोलने की आजादी की सीमाएं न तो स्पष्ट परिभाषित है न इनके दुरूपयोग को रोकने के न कोई विशिष्ट प्रबंध हैं.
भारत में फ्रीडम ऑफ़ स्पीच और एक्सप्रेशन के नाम पर आए दिन देश द्रोही बाते आम हैं. हर दिन देश को तोड़ने वाली वाली बाते बड़े बड़े मंचों से केवल फ्रीडम के नाम से कही जाती हैं.
देश की सेना, प्रधानमंत्री, हिन्दू धर्म के बारे में आए दिन वैसे विवादित ब्यान दिए जाते हैं जिन्हें अधिकारों की चादर ओढकर छिपाने का छद्म व्यापार सभी के सामने हैं.
निष्कर्ष
किसी भी समाज में नागरिकों के विचारों का दमन करना ठीक नहीं हैं. विचारों का खुला प्रवाह विकास की राह खोलता हैं. साथ ही किसी नागरिक को किस हद तक जाकर बोलने की आजादी होनी चाहिए, इन पर कठोर कानून बनाकर समुचित व्यवस्था बनाएं जाने की जरूरत हैं.
आज सोशल मिडिया अभिव्यक्ति का एक बड़ा माध्यम हैं. जहाँ पर अच्छे विचारों के साथ ही देश की एकता और सौहार्द को बिगाड़ने वाले भड़कीले भाषण भी देखने मिलते हैं.
समय आ गया हैं राष्ट्र को तोड़ने की नियत से कहे जाने वाले विचारों का दमन आवश्यक हैं साथ ही आम आदमी को राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा, सम्प्रभुता के विषयों को छोडकर अन्य पर बोलने अपने विचार रखने की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए.