मोतीलाल तेजावत की जीवनी | Biography of Motilal Tejawat In Hindi: आदिवासियों का मसीहा कहे जाने वाले मोतीलाल तेजावत ने आजीवन आदिवासियों के अधिकारों तथा उनके हक की लड़ाई को लड़ा. उन्होंने वनवासी संघ की स्थापना की तथा सामजिक क्षेत्र में एकी आंदोलन चलाया.
Biography of Motilal Tejawat In Hindi | मोतीलाल तेजावत की जीवनी

पूरा नाम | मोतीलाल तेजावत |
जन्म | १६ मई, १८९६ |
उपनाम | आदिवासियों का मसीहा |
संगठन | वनवासी संघ |
आंदोलन | एकी नामक आन्दोलन |
संसदीय क्षेत्र | उदयपुर व चितौडगढ़ |
पहचान | स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता |
मृत्यु | १४ जनवरी १९६3, उदयपुर |
आदिवासियों के मसीहा मोतीलाल तेजावत का जन्म 1888 ई में झाड़ोल के पास कोल्यारी गाँव में हुआ. शिक्षा समाप्ति के बाद ये झाड़ोल ठिकाने में कामदार बन गये.
भीलों, गरासियों और कृषकों के शोषण से द्रवित होकर तेजावत ने ठिकाने की नौकरी छोड़ दी, और इन्हें जागरूक करने का कार्य आरम्भ किया.
तेजावत के प्रयासों से 1921 ई में मातृकुण्डियाँ में वैशाखी पूर्णिमा के मेले में आदिवासियों की पंचायत आयोजित हुई. जिसमें बैठ बेगार लगान एवं जागीरदारों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष करने तथा अपनी समस्याओं से मेवाड़ महाराणा को अवगत कराने का निर्णय लिया गया.
आंदोलन को गति देने एवं सफलता प्राप्ति के लिए तेजावत नेता चुना गया. तेजावत ने सभी आदिवासियों को एकता की शपथ दिलाई, जिससे यह एकी आंदोलन कहलाया.
तेजावत के नेतृत्व में आदिवासियों ने 21 सूत्री मांगों को लेकर उदयपुर में धरना दिया. अन्तः महाराणा ने इनकी 18 मांगे मान ली, मगर तीन प्रमुख मांगे जंगल से लकड़ी काटने, बीड में से घास काटने तथा सूअर मारने से सम्बन्धित थी, नहीं मानी.
आदिवासियों के जागरूक हो जाने से जागीरदारों को समस्या हुई. अन्तः झाड़ोल ठिकानेदार ने तेजावत की हत्या का प्रयास किया, जिससे भीलों ने नाराज होकर, झाड़ोल को घेर लिया. अपराधियों को सजा देने के आश्वासन पर ही भील वहां से हटे.
यह आंदोलन मेवाड़ की सीमा के बाहर सिरोही में भी फ़ैल गया. सिरोही सरकार ने बल प्रयोग से आंदोलन को दबाना चाहा, मगर सफल नहीं हो पाई. अन्तः उसे गरासियों को सुविधाएं देनी पड़ी.
इन घटनाओं से मेवाड़ पर अंग्रेजी दवाब बढ़ा. अन्तः मेवाड़ सरकार ने तेजावत की गिरफ्तारी पर 500 रूपये का इनाम घोषित किया. काफी प्रयासों के वाबजूद सात वर्षों तक तेजावत को बंदी नही बनाया जा सका.
अन्तः तेजावत को लम्बी मशक्कत के बाद गिरफ्तार कर लिया गया और महेंद्रराज सभा ने इन्हें देश की शान्ति के लिए बड़ा खतरा मानते हुए अनिश्चित काल के लिए जेल भेज दिया. 1936 ई में आदिवासी क्षेत्रों में नहीं जाने की शर्त पर तेजावत को जेल से रिहा किया गया.
जेल से छुटने के बाद तेजावत ने राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया और पुनः जेल गये. स्वतंत्रता के बाद इन्होने आदिवासियों के मध्य रचनात्मक कार्य किया. 1963 ई में इनकी मृत्यु हो गई.