Jamnalal Bajaj Biography In Hindi | जमनालाल बजाज की जीवनी: काशी का बास सीकर में जन्मे जमनालाल बजाज महात्मा गांधी के पांचवें पुत्र के रूप में प्रख्यात थे.
राष्ट्रीय आंदोलन में उन्होंने खुले मन से आर्थिक योगदान दिया. विद्यार्थी काल में ही बजाज ने अपने निजी खर्च से सौ रूपये बचाकर तिलक के दैनिक केसरी के हिंदी संस्करण को चंदा दिया.
जमनालाल बजाज की जीवनी | Jamnalal Bajaj Biography In Hindi

पूरा नाम | जमनालाल बजाज |
जन्म | 4 नवम्बर, 1889 |
जन्म भूमि | काशी का वास, सीकर, राजस्थान |
मृत्यु | 11 फ़रवरी, 1942 |
मृत्यु स्थान | वर्धा, महाराष्ट्र |
पिता | कनीराम |
माता | बिरदीबाई |
पत्नी | जानकी देवी बजाज |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उद्योगपति |
आज के बजाज ग्रुप के संस्थापक और स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल जी बजाज का जन्म 4 नवम्बर 1889 को सीकर के काशी वास में हुआ था.
इनके पिताजी का नाम कनीराम था जो एक छोटे किसान थे. बहुत छोटी आयु में ही इन्हें सेठ बछराज ने गोद ले लिया. सीकर के ये सेठ नागपुर से आकर सीकर बसे थे.
इनका परिवार वर्धा जा बसा. महज कक्षा चौथी तक ही ये विधिवत शिक्षा प्राप्त कर सके थे. 13 साल की आयु में ही जमनालाल जी का बाल विवाह हो गया था तथा 17 वर्ष के होते होते इन्होने बिजनैस में करियर की शुरुआत की. थोड़े ही समय में इन्होने एक एक कर कई कम्पनियां खड़ी कर दी.
स्वदेशी के प्रबल समर्थक जमनालाल बजाज ने 1906 ई के स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया और विदेशी वस्त्रों की होली जलाने का कार्य अपने परिवार से शुरू किया.
जमनालाल बजाज गांधी के कार्यों से बहुत प्रभावित थे. 1920 ई में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग का प्रस्ताव पारित होने पर उन्होंने अपनी रायबहादुर की पदवी त्याग दी.
1920 ई में ही कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष बनाए गये और यही से वे गांधीजी के पांचवे पुत्र के रूप में जाने गये. उन्होंने 1921 ई में वर्धा में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की और विनोबाजी को साबरमती से वर्धा ले आए. उन्होंने विनोबा भावे को अपना गुरु माना.
1923 ई में राष्ट्रीय झंडे पर प्रतिबंध लगाने पर जमनालाल ने नागपुर में झंडा जुलुस का नेतृत्व किया. फलतः उन्हें डेढ़ वर्ष की सजा दी गई. जेल में उन्होंने प्रथम की बजाय सी श्रेणी मे रहना स्वीकार किया. बजाज राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रबल पक्षधर थे तथा इसे ईमान की भाषा कहते थे.
हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में व्यापक बनाने के लिए उन्होंने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना की. उन्होंने दक्षिण भारत में भी हिंदी का प्रचार किया.
उन्होंने हिंदी पत्र पत्रिकाओं नवजीवन, कर्मवीर, प्रताप, राजस्थान केसरी, त्याग भूमि आदि के संवर्धन एवं प्रोत्साहन के लिए सहायता दी.
जमनालाल बजाज ने हरिजनोंउद्धार का भी कार्य किया. इन्होने अपने पारिवारिक मंदिर एवं कुँए को हरिजनों के लिए खोल दिया. सीकर में हरिजन विद्यालय खोला तथा अपने घर पर हरिजन सेवक रखकर एक आदर्श प्रस्तुत किया. 1930 ई में नमक सत्याग्रह में भाग लेने पर बजाज को एक बार पुनः जेल जाना पड़ा.
जमनालाल बजाज ने व्यापारी समाज को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने की पहल की तथा बिजौलिया के किसानों के लिए सत्याग्रह, मेवाड़ महाराणा एवं किसानों में समझौता एवं ब्यावर मिल के मजदूरों की हड़ताल के समय समझौता कराया. उन्होंने रियासतों में प्रजामंडलों की स्थापना में सहयोग दिया.
सीकर और जयपुर में प्रजामंडल गतिविधियों को दिशा निर्देश देने के साथ साथ वे एक प्रकार से पुरे भारत की देशी रियासतों से शोषित और पीड़ित जनता को उनके नागरिक अधिकार दिलाने और उत्तरदायी सरकारों की स्थापना कराने के लिए प्रयत्नशील रहे.
श्री बजाज जयपुर प्रजामंडल के संस्थापकों में से एक थे. तथा 1938 से 1942 ई तक इसके अध्यक्ष भी रहे. गांधीजी के आग्रह पट अपने जीवन के अंतिम चरण में अपने आपकों गो सेवा के कार्य के लिए समर्पित कर दिया. 1940 ई में व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी जमनालाल बजाज शामिल हुए और पुनः जेल गये.
जेल से छूटकर वे आध्यात्मिक यात्रा पर निकल गये. उन्होंने मारवाड़ी शिक्षा मंडल, गौ सेवा, नई तालीम, ग्रामोद्योग, महिला एवं हरिजन सेवा, गाँधी सेवा संघ, देशी राज्य, राष्ट्रभाषा, सत्याग्रह आश्रम एवं ग्राम सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया.