अगस्त प्रस्ताव का इतिहास August Offer History In Hindi: अगस्त प्रस्ताव की घोषणा 8 अगस्त, 1940 को ब्रिटिश सरकार के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा की गई.
भारत में साम्प्रदायिकता के बीज को बोने वाले अगस्त प्रस्ताव में अल्प संख्यक समुदाय के ऐसे मौके दिए गये जिनकी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की. अगस्त प्रस्ताव का जहाँ मुस्लिम लीग ने दिल खोल कर स्वागत किया तो कांग्रेस ने इसका पुरजोर विरोध किया था.
अगस्त प्रस्ताव की पहली बात भारतीयों के लिए अपने एक संविधान की बात कही गई मगर इनका निर्माण उन्ही के अनुसार होगा यहाँ उन्ही का आशय अल्पसंख्यक से था.
अगस्त प्रस्ताव का इतिहास August Offer History In Hindi

August Offer 1940 History In Hindi लार्ड लिनलिथगो ने 8 अगस्त 1940 को घोषणा की जिसे भारतीय संवैधानिक इतिहास में अगस्त प्रस्ताव कहा जाता हैं.
अंग्रेजों ने भारतीयों की मांगको परोक्ष रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि युद्ध उपरांत ब्रिटिश सरकार एक समिति नियुक्ति करेगी जिसमें सभी वर्गों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.
इस प्रस्ताव के द्वारा भारतीयों की संविधान सभा की मांग को प्रत्यक्ष स्वीकार नहीं किया गया. परन्तु यह स्वीकार कर लिया कि भारतीय संविधान के निर्माण का मुख्य रूप से भारतीयों द्वारा किया जाएगा.
- पं नेहरू ने अगस्त घोषणा को दरवाजे में जड़ी जंग लगी कील बताया.
- सितम्बर 1940 में गांधीजी ने व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का निर्णय लिया.
- 17 अक्टूबर 1940 को बिनोबा भावे ने युद्ध के विरोध में भाषण देकर सत्याग्रह किया, विनोबा भावे पहले सत्याग्राही थे.
मूल्यांकन
प्रस्ताव में पहली बार भारत के लोगों द्वारा अपना संविधान निर्माण करने की शर्त को स्वीकार किया गया था. डोमिनियन स्टेट्स को पहली बार ब्रिटिश सरकार ने आधिकारिक रूप से मान्यता प्रदान कर दी.
अगस्त प्रस्ताव की शर्तों के मुताबिक जुलाई 1941 में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के दायरे को बढ़ाकर इसमें भारत के लोगों को स्थान दिया गया. साथ ही रक्षा, वित्त एवं गृह सचिव जैसे महत्वपूर्ण विभाग अभी भी अंग्रेजी हुकूमत के अधीनस्थ रखे गये थे.
प्रतिक्रिया
अगस्त, 1940 ई. के इस अगस्त प्रस्ताव में मुसलमानों को वह सब कुछ दिया गया जिसकी उन्होंने न कभी आशा की न मांग की थी. अगस्त घोषणा में यह भी कहा गया कि संविधान मुसलमानों की अनुमति से ही बनेगा जिसे मुस्लिम लीग ने सहर्ष स्वीकार कर लिया यही विषय था जिसके चलते कांग्रेस ने प्रस्ताव का मुखर विरोध किया.
इस प्रस्ताव के सम्बन्ध में भारत के राज्य सचिव एल.एस. एमरी ने जो बात कही वह काफी हद तक सही थी उन्होंने कहा था- “आज मुख्य झगड़ा ब्रिटिश सरकार और स्वतंत्रता मांगने वाले तत्वों में नहीं, अपितु भारत के राष्ट्रीय जीवन में भिन्न-भिन्न तत्त्वों में है।”
अगस्त प्रस्ताव की घोषणा
भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो के द्वारा साल 1940 में 8 अगस्त के दिन भारत देश में अगस्त प्रस्ताव को प्रस्तुत किया गया था। अगस्त प्रस्ताव में कुछ ऐसे प्रावधान थे जिसकी वजह से भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को काफी खुशी हासिल हुई।
क्योंकि उन्हें इस प्रस्ताव के द्वारा कुछ ऐसी चीजें प्राप्त हुई थी जिनकी उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। अगस्त प्रस्ताव के द्वारा ही सबसे पहली बार इस बात को कहा गया था कि भारतीय लोगों के पास अपना खुद का एक भारतीय संविधान होना चाहिए जिसका वह पालन कर सके।
अगस्त प्रस्ताव के प्रमुख प्रावधान
साल 1940 में 8 अगस्त के दिन प्रस्तुत हुए अगस्त प्रस्ताव के कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार है।
अगस्त प्रस्ताव के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया था कि जल्द से जल्द वायसराय की सलाहकार काउंसिल का विस्तार किया जाए इसके साथ ही साथ कार्यकारिणी में भारतीय लोगों की संख्या को बढ़ाने पर भी विचार विमर्श किया जाए।
अगस्त प्रस्ताव में यह भी प्रावधान था कि बिना अल्पसंख्यक समुदाय के भरोसे को जीते हुए किसी भी संवैधानिक परिवर्तन को लागू नहीं किया जा सकेगा।
अगस्त प्रस्ताव में कहा गया था कि युद्ध से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा जिसका नाम युद्ध परामर्श समिति होगा।
युद्ध खत्म हो जाने के पश्चात अलग-अलग भारतीय दलों की बैठक बुलाई जाएगी और बैठक में संवैधानिक विकास पर विचार किया जाएगा।
चर्चिल की घोषणा
साल 1941 में 9 सितंबर के दिन ब्रिटेन देश के प्रधानमंत्री चर्च इन ने एक घोषणा करते हुए कहा कि भारत पर अटलांटिक चार्टर बिल्कुल भी लागू नहीं होगा.
चर्चिल के द्वारा घोषणा करने के पश्चात भारतीय लोगों में यह भावना काफी प्रबल हो गई कि ब्रिटिश अंग्रेज गवर्नमेंट भारत की स्वतंत्रता के प्रति बिल्कुल भी ईमानदार नहीं है और उनके द्वारा कोई ना कोई कुटिल चाल चली जा रही है।