chandradhar sharma guleri biography in hindi: हिंदी के कथाकार, व्यंग्यकार एवं निबंधकार पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जीवन परिचय आज हम पढेगे. मात्र दस वर्ष की आयु में इन्होने संस्कृत की विद्वता हासिल कर ली थी.
ये हिमाचल के रहने वाले थे. जयपुर राजस्थान में 1883 में पंडित गुलेरी जी का जन्म हुआ था. इन्होने घर से ही संस्कृत, वेद, पुराण, पूजा पाठ एवं धर्म की शिक्षा प्राप्त की थी.
पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की इस जीवनी में हम उनके इतिहास, रचनाओं को विस्तार से पढेगे.
chandradhar sharma guleri biography in hindi

जीवन परिचय बिंदु | guleri biography in hindi |
पूरा नाम | पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी |
जन्म | 7 जुलाई, 1883 |
जन्म स्थान | जयपुर, राजस्थान |
पहचान | कथाकार, व्यंगकार तथा निबन्धकार |
मृत्यु | 12 सितम्बर 1922, काशी, उत्तर प्रदेश |
यादगार कृतियाँ | उसने कहा था. |
पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी
पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरीहिंदी के प्रारम्भिक कथाकार थे, द्वेदी युग के प्रथम कलात्मक कहानीकार माने जाते हैं. आपका जन्म 1883 में जयपुर के पंडित शिवराम गुलेरी के यहाँ हुआ. इनके पिटा श्री को जयपुर नरेश महाराजा रामसिंह उनकी विद्वता से प्रभावित होकर गुलेर ग्राम से जयपुर ले आए.
इस प्रकार गुलेरी जी का सम्बन्ध राजपंडित घराने से रहा हैं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की शिक्षा दीक्षा जयपुर में ही हुई. विद्वान् पिता के विवेकवान पुत्र ने संस्कृत, भाषा, साहित्य, ज्योतिष, दर्शन, इतिहास का गहन अध्ययन किया. वे ख्यातनामा, भाषा वैज्ञानिक भी थे और उक्त सभी विषयों पर आपने महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे.
इन्होने दर्शनशास्त्र में एम ए किया. जयपुर से समालोचक नामक पत्र भी प्रकाशित किया और वर्षों तक उसके सम्पादक रहे, आप श्रेष्ठ निबंधकार, कहानीकार, इतिहासकार तथा ज्योतिषाचार्य थे. इनकी भाषा शैली में व्यंग्य विनोद की प्रधानता दृष्टव्य हैं.
चंद्रधर शर्मा की शिक्षा
पंडित चंद्रधर शर्मा बचपन से ही काफी होनहार थे और बड़े होने के पश्चात इन्होंने जर्मन,फ्रेंच, मराठी, बांग्ला, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और पाली भाषा का अच्छा ज्ञान हासिल किया।
इन्हें साहित्य दर्शन, भाषा विज्ञान और प्राचीन भारतीय इतिहास का काफी अच्छा ज्ञान था साथ ही यह एक बहुत ही बेहतरीन ज्योतिष भी थे।
पंडित होने के नाते बचपन से ही इनके घर में वेद, पुराण, रामायण, महाभारत का पाठ होता था साथ ही इन्हें भी पूजा पाठ में शामिल किया जाता था।
इस प्रकार से 10 साल की उम्र होते होते ही इन्होंने भारत धर्म महामंडल के विद्वानों के सामने संस्कृत में भाषण दिया जिसे लोगों ने काफी पसंद किया।
इसके अलावा यह 5 साल में ही अंग्रेजी के टेलीग्राम को अच्छी तरह से पढ़ने लगे थे। इन्होंने जितनी भी परीक्षा दी उसे फर्स्ट डिवीजन में पास किया।
इन्होंने मास्टर ऑफ आर्ट की एग्जाम भी फर्स्ट श्रेणी में पास की साथ ही अंग्रेजी शिक्षा भी इन्होंने हासिल की और कोलकाता यूनिवर्सिटी से इन्होंने एफ. ए. प्रथम श्रेणी में तथा प्रयागराज यूनिवर्सिटी से b.a. प्रथम श्रेणी में पास किया।
चंद्रधर शर्मा का कैरियर
सन 1900 में जयपुर में नगरी मंच की स्थापना में इन्होंने विशेष तौर पर योगदान दिया है। यह योगदान इन्होंने गुलेरी का अध्ययन करने के दरमियांन दिया था।
इसके अलावा इन्होंने साल 1902 से हर महीने आने वाली मासिक पत्रिका समालोचक के संपादन का काम भी संभाला साथ ही यह थोड़े समय तक काशी के नागरी प्रचारिणी सभा के संपादक मंडल में भी शामिल रहे।
इसके अलावा इनके द्वारा पुस्तक माला और सूर्य कुमारी पुस्तक माला का संपादन किया गया तथा इन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति के पद को भी संभाला।
अजमेर के मेयो कॉलेज में इन्होंने साल 1904 में टीचर के तौर पर काम करना प्रारंभ किया। मदन मोहन मालवीय जी ने इन्हें बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर का पद दिलवाया।
साल 1916 में इन्होंने मेंयो कॉलेज में संस्कृत डिपार्टमेंट के अध्यक्ष के पद को ग्रहण किया। हालांकि इसी दरमियान इनके परिवार में विभिन्न लोगों की दुर्घटनाएं भी हुई।
चंद्रधर शर्मा की रचनाएं
यह सबसे अधिक प्रसिद्ध अपने निबंधों की वजह से हुए। इसलिए लोग इन्हें प्रसिद्ध निबंधकार कहते थे, क्योंकि इनके द्वारा 90 से अधिक निबंध की रचना की गई थी।
साल 1903 में जब जयपुर से जैन वैद्य के जरिए समालोचक पत्र प्रकाशित होना शुरू हुआ था तो उसमें यह संपादक के तौर पर भी काम करने लगे और सही प्रकार से इन्होंने समालोचक पत्रिका में अपने निबंध और अपनी टिप्पणी लिखी। इनके द्वारा लिखे गए निबंध में मुख्य तौर पर इतिहास, दर्शन, धर्म, मनोविज्ञान और पुरातत्व संबंधी वस्तुएं होती थी।
पंडित चंद्रधर शर्मा जी के द्वारा कुछ प्रमुख निबंध लिखे गए थे, जिनके नाम निम्नानुसार है।
1: निबंध
- शैशुनाक की मूर्तियाँ
- देवकुल
- पुरानी हिन्दी
- संगीत
- कच्छुआ धर्म
- आँख
- मोरेसि मोहिं कुठा
पंडित चंद्रधर शर्मा जी के द्वारा लिखित कुछ प्रमुख कविताओं के नाम निम्नानुसार है।
2: कविताएँ
- एशिया की विजय दशमी
- भारत की जय
- वेनॉक बर्न
- आहिताग्नि
- झुकी कमान
- स्वागत
- ईश्वर से प्रार्थना
- कहानी संग्रह
- उसने कहा था
- सुखमय जीवन
- बुद्धु का काँटा
पंडित चंद्रधर शर्मा जी की प्रसिद्धि
पंडित चंद्रधर शर्मा जी ने साल 1915 में सरस्वती नाम की मासिक पत्रिका में एक कहानी लिखी थी जिसका शीर्षक “उसने कहा था” था। यह कहानी लोगों को काफी अधिक पसंद आई और अपनी इसी कहानी की वजह से इन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि हासिल हुई।
उसने कहा था कहानी हिंदी साहित्य की इनकी सबसे अधिक प्रसिद्ध कहानी थी और विषय वस्तु तथा शिल्प के नजरिए से देखा जाए तो वर्तमान के समय में भी यह कहानी मील का पत्थर मानी जाती है।
कृतित्व
गुलेरी जी मुख्यतः निबंधकार एवं भाषा वैज्ञानिक थे, जिस पर इन्होने बहुमूल्य ग्रंथ लिखे. इनकी निबंध संकलन की प्रमुख उपलब्धि हैं कछुआ धर्म.
साथ ही इन्होंने अपने जीवनकाल में मात्र तीन कहानियाँ लिखी. सुखमय जीवन, बुद्धू का काँटा और उसने कहा था. जिससे वे हिंदी कहानी जगत में लोकप्रिय हो गये.
कहानी कला
कहानीकार गुलेरी जी ऐसे प्रथम कहानीकार है, जिन्होंने हिंदी जगत में पाश्चात्य कहानी कला के आधार पर कहानियाँ लिखी. उसने कहा था हिंदी की प्रथम कलात्मक कहानी कही जा सकती हैं. जिसमें सुगठित कथानक, चरित्रांकन, वातावरण चित्रण, भाषा तकनीक में नवीनता तथा उद्देश्यनिष्ठता के दर्शन होते हैं.
उसने कहा था प्रथम विश्व युद्ध की पृष्टभूमि पर रचित सफल व सक्षम कहानी हैं. कहानी का नायक बचपन में अमृतसर के बाजार में किसी सिख बालिका से प्रभावित होकर बार बार कहता है तेरी कुडमाई अर्थात सगाई हो गई.
उत्तर में कुछ दिनों तक वह धत कहकर भाग जाती हैं, किन्तु एक दिन वह कहती है हाँ हो गई हैं. तभी वह अबोध बालक अज्ञात कारणवश अशांत हो उठता है. रास्ते में कई लोगों को धकियाते हुए घर पहुँचता हैं.
सम्मान
गुलेरी ने कहानी व निबंध विधा में लेखन के अतिरिक्त सम्पादक, शिक्षक एवं इतिहासकार के रूप में भी कार्य किया. वे 1904 से 1922 तक विभिन्न संस्थानों में शिक्षण कार्य करवाते रहे,
उन्हें इतिहास क्षेत्र में योगदान के लिए इतिहास दिवाकर सम्मान से सम्मानित किया गया. पंडित मालवीय के आग्रह पर वे 11 फरवरी 1922 को काशी के हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचार्य भी बने.
भाषा-शैली
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने अपनी रचनाएं वार्तालाप शैली में लिखी हैं. वे कहानी कथन के लहजे में पाठक को सम्बोधित करते हैं. उनके शब्द एवं वाक्य विन्यास में कहीं कहीं त्रुटियाँ स्वाभाविक हैं क्योंकि यह वह दौर था जब खड़ी बोली अपने आरम्भिक दौर में थी. वे अपने लेखन में संस्कृत के कुछ अप्रचलित शब्दों एवं लोकभाषा के शब्दों को भी प्रयोग में लाए हैं.
गुलेरी जी की कहानियों एवं निबंध रचनाओं में उदाहरण बहुलता देखने को मिलती हैं जिससे कथ्य अधिक ग्राह्य एवं भाव पाठक समझ पाते हैं. प्रत्येक सन्दर्भ में गुलेरी जी की भाषा शब्दावली को छोड़कर आत्मीय एवं सजीव रही हैं.
चन्द्रधर गुलेरी को हिंदी साहित्य में आज दो कारणों से याद किया जाता हैं एक उनका प्रकाशन कार्य जो उन्होंने 1915 में सरस्वती नामक पत्रिका का किया था, इसके अतिरिक्त उनकी लोकप्रिय कहानी उसने कहा था. इनके कारण हिंदी जगत में कहानी कार के रूप में प्रसिद्ध हुए थे.
मृत्यु
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का देहावसान मात्र 39 साल की आयु में ही पीलिया हो जाने के कारण 12 सितम्बर 1922 को काशी में हो गया था.
Chandradhar Sharma guleri