Heaven Quotes In Hindi (स्वर्ग सुविचार) : एक ऐसे लोक की कल्पना जहाँ सुख है सम्रद्धि आपसी प्रेम भाईचारा यानी सभी अच्छाईयों के भरे जग की कल्पना को स्वर्ग कहा गया हैं.
लगभग सभी धर्मों की कुछ समान मान्यताएं है जिनमें एक यह भी है कि जिसने अपने जीवनकाल के दौरान बुरे कर्म किये है उन्हें मृत्यु के बाद नरक की पीड़ा झेलनी पड़ेगी तथा जिन्होंने अच्छे कर्म किये है उन्हें ईश्वर के लोक यानी स्वर्ग में स्थान मिलेगा.
असल में स्वर्ग क्या है कोई नही समझ पाया हैं. आज हम स्वर्ग पर सुविचार (Heaven Quotes) में कुछ महापुरुषों के थोट्स को जानेगे, और समझने की कोशिश करेगे कि स्वर्ग की परिभाषा एवं अर्थ क्या हैं.
Heaven Quotes In Hindi | स्वर्ग पर सुविचार अनमोल वचन

1#. अगर भगवान दुष्टों को माफ़ ना करे तो स्वर्ग खाली ही रह जायेगा .
2#. हमारे शैशव में स्वर्ग हमारे चारों ओर विश्राम करता हैं.
3#. स्वर्ग में सेवा करने की अपेक्षा नर्क में शासन करने से अधिक अच्छा हैं.
4#. स्वर्ग का अर्थ परमात्मा के साथ एकाकार होना हैं.
5#. नर्क का निर्माण ईर्ष्या द्वेष पर हुआ था, और स्वर्ग का निर्माण अहंकार पर.
6#. जिसकों स्वर्ग की चिंता नहीं हैं वह तो स्वर्ग में ही हैं.
7#. स्वर्ग अनंत आह्लाद का कोष हैं.
8#. अपूर्ण इच्छाओं की मात्र कल्पना ही स्वर्ग हैं.
9#. कला मानवीय आत्मा की गहरी परतो को उजागर करती है. कला तभी सभव है जब स्वर्ग धरती को छुए.
10#. स्वर्ग से कितना दूर ? बस अपनी आँखे खोलो और देखो . तुम स्वर्ग मे हो .
11#. न अपनों से खुलता है न औरों से खुलता है स्वर्ग का दरवाजा तो माँ के पैरों से खुलता हैं.
12#. स्वर्ग का सपना छोड़ दो, नर्क का डर छोड़ दो, कौन जाने क्या पाप और क्या पूण्य बस किसी का दिल ना दुखाना बाकी कुदरत पर छोड़ दो.
13#. उस इन्सान ने स्वर्ग में जगह पा ली है जिसका बेटा आज्ञाकारी हो, जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करती हो तथा जिन्हें अपने धन पर संतोष हो.
14#. जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर हैं.
15#. स्वर्ग और नरक यही है इसी धरा पर.
16#. विवाह ना तो स्वर्ग है ना ही नर्क यह तो बस एक यातना हैं.
17#. स्वर्ग प्राप्त करने और वहा कई वर्षो तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुब मे जन्म होता है .
स्वर्ग पर सुविचार
जो घर मंदिर समान है, जहाँ रिश्तो में आपसी प्रेम भावना का भाव बसता है, परिवार का माहौल अपनत्व से भरा हो, एक दूसरे का साथ खुशी देता हो ऐसा घर स्वर्ग के समान है।
मनुष्य का जीवन अगर सुकर्मों से भरा हो तो उसके मन-मस्तिष्क में ईश्वर का वास होता है और जहाँ भावना सच्ची हो वहाँ स्वर्ग की अनुभूति होती है।
मनुष्य जीवन अगर सुख, समृद्धि, सफलता, अच्छाईयों से भरा है तो स्वर्ग अपने आसपास ही महसूस होगा।
ईश्वर की भक्ति में लीन होना स्वर्ग के दर्शन समान है। ईश्वरीय भक्ति में खो जाना और ईश्वर पर अपना सर्वस्व निछावर करना स्वर्ग के मार्ग की दिशा निर्धारित करता है।
बुरे कर्म नरक ले जाते हैं और अच्छे कर्म स्वर्ग ले जाते हैं।
मनुष्य स्वर्ग का आभास अपनी माँ के आँचल में करता है जहाँ सुकून ही सुकून होता है।
स्वर्ग का आभास करना है तो मनुष्य को किसी के साथ बुरा नहीं करना चाहिए, किसी का दिल नहीं तोड़ना चाहिए, बुरे कर्मों से दूर रहना चाहिए।
कोई मनुष्य पाप करके स्वर्ग कभी नहीं पहुँच सकता है और पुण्य करके स्वर्ग से दूर नहीं रह सकता है।
एक संतोषी मनुष्य को स्वर्ग का आभास होता है अगर परिवार उसकी इच्छा अनुसार व्यवहार करता है।
मनुष्य को अपने देश अपनी मातृभूमि के समीप अपने माता-पिता के समीप्य में स्वर्ग की अनुभूति होती है।
स्वर्ग और नरक को भले किसी ने देखा हो या नहीं लेकिन प्राचीन काल से इनकी अनेक मान्यताएँ प्रसिद्ध हैं जो मानवीय आस्था व विश्वास से जुड़ी हैं।
स्वर्ग को खुशी, सुख, समृद्धि, संतोष, धन संपदा, सभी सुविधाओं से पूर्ण सुंदर माहौल की कल्पना माना जाता है जिसे मृत्यु के पश्चात प्राप्त किया जाता है। अच्छे कर्मों को करने वाले लोगों को स्वर्ग जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
मनुष्य अपनी मातृभूमि पर ही स्वर्ग और नरक प्राप्त करता है। जिस मनुष्य के व्यक्तित्व में महानता के गुण प्रदर्शित होते हैं, जो अच्छे कर्मों से जीवन यापन करता है और व्यवहार में सत्कर्म को अपनाता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति स्वरूप उसका जीवन खुशहाल हो जाता है और बुरे कर्मों व पाप का भागीदार बनने पर नरक समान जीवन हो जाता है।
अगर मनुष्य अपने जीवन में क्रोध, ईर्ष्या, अहम् के भाव, लालच, झूठ, वासना, स्वार्थ को स्थान देता है तो मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती है बल्कि नरक की ओर जाने वाले रास्ते बन जाते हैं।
जीते जी जन्नत अपने किए पुण्यों से प्राप्त किए जा सकते हैं और कल्पना की स्वर्ग अनुभूति मृत्यु के पश्चात होती है।
मनुष्य का सबसे अच्छा पड़ाव बाल्यावस्था होती है जिसमें स्वर्ग की अनुभूति होती है।
मनुष्य अपने जीवन में इतनी गलतियाँ करता है, दूसरों को दुख देता है अगर क्षमा की भावना और ईश्वर कृपा ना मिले तो स्वर्ग का सुख किसी मनुष्य को प्राप्त नहीं होगा।
अगर मनुष्य के मन में सकारात्मक भाव हो, सोच में सद्भावना हो तो अपने अभिभावकों की सेवा में मनुष्य को स्वर्ग की अनुभूति होती है।
मनुष्य अगर अपने परिवार में खुश नहीं रह पाता तो खुशी दिलाने में स्वर्ग भी विफल हो जाता है।
समाज में रहते हुए इसी दुनिया में मनुष्य स्वर्ग पा लेता है। अपने अच्छे कर्मों के द्वारा एवं पुण्य से अपना जीवन सुनहरा बना लेता है।
अगर मनुष्य दूसरों के साथ बुरा करता है तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति की बात छोड़ देनी चाहिए क्योंकि दूसरों को कष्ट पहुँचाने वालों को कभी स्वर्ग के दर्शन नहीं होते हैं।
स्वर्ग नरक के माध्यम से मनुष्य के कर्म निर्धारित होते हैं जो उनकी जीवन प्रक्रिया के लेखे जोखे का हिसाब रखते हैं।
स्वर्ग अक्सर उन मनुष्यों को प्राप्त होता है जो अपना जीवन सत्कर्मों से भर लेते हैं साथ ही अपनी खुशी के साथ दूसरों को भी खुशी देते हैं।
अपने देश के प्रति मर मिटने वाले, अपनी मातृभूमि पर जान निछावर करने वाले स्वर्ग के भागीदार होते हैं वो मर कर भी अमर हो जाते हैं।
मनुष्य सांसारिक मोहमाया में पड़कर अपना असली दायित्व भूल जाता है और स्वर्ग की प्राप्ति से लगभग दूर हो जाता है।
स्वर्ग वो खुशी है जो मनुष्य को उसके पुण्य कर्मों के तोहफे समान प्राप्त होती है जो जीवन को स्वर्णिम बना देती है।
मनुष्य को जीवन का लक्ष्य ज़रूर बनाना चाहिए तभी स्वर्ग रूपी खुशी प्राप्त होती है।
मनुष्य संसार में रहते हुए अगर दूसरों की सहायता करता है, भूखों को अन्न खिलाता है, मुसीबत में पड़े इंसानों को निकालता है, दूसरों के दुख दूर करता है, दूसरों के चेहरे पर मुस्कुराहट ले आता है ऐसे कर्मों को निभाने वाला वाला मनुष्य स्वर्ग का अधिकारी होता है।
मनुष्य का स्वभाव व व्यवहार उसके कर्मों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है जिससे उसके स्वर्ग नरक का मार्ग बनता है।
मनुष्य अगर स्वर्ग की इच्छा रखता है तो उसे अपने जीवन में अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
मनुष्य को अपने कर्मों का फल मिलता है जो जैसा कर्म करता है उसे उसके हिसाब से स्वर्ग और नरक मिलता है।
ईश्वर की भक्ति में लिप्त मनुष्य ईश्वर के समीप हो जाता है और ईश्वरीय सामीप्य अनुभव करता है जिससे उसे स्वर्ग की अनुभूति होती है।
मनुष्य को इतना ज्ञान प्राप्त करना चाहिए कि स्वयं को गलत मार्ग पर जाने से रोक सके, भले बुरे की समझ हो ताकि स्वर्ग की चाहत में कुछ गलत ना करें।
मनुष्य के मन में इतनी इच्छाएँ होती हैं कि वह उसे पूर्ण करने में अपना वास्तविक लक्ष्य भूल जाता है इस वजह से स्वर्ग का द्वार दूर हो जाता है। स्वर्ग की ओर बढ़ने के लिए संतोषी व आदर्श मन की ज़रूरत होती है जो निश्चल हृदय से सत्कर्म की भावना से ही आगे बढ़ सकता है।
आसमानी स्वर्ग मृत्यु के पश्चात प्राप्त होती है और धरती का मानवीय संसार कश्मीर को स्वर्ग कहता है जो स्वर्ग समान खूबसूरती का परिचायक है तभी कश्मीर को स्वर्ग की संज्ञा दी गई है।
मनुष्य अगर स्वर्ग के प्रति इच्छा नहीं करता और इसी संसार में अपने मनोरथ पूरे करता है तो उसका मन ही उसे स्वर्ग की अनुभूति करा देता है।
मनुष्य अपना जीवन सुख सुविधाओं और विलास में बिता लेता है लेकिन संतुष्ट नहीं रहता और मन में विकार का जन्म होता है जो नरक की अनुभूति कराता है लेकिन संतुष्टि भरा मन सुविधाओं के ना होने पर भी स्वर्ग का आभास कर लेता है।
संतोष सांसारिक रूप से परम धर्म स्वरूप है जो मनुष्य को स्वर्ग और नरक का आभास कराती है जिससे मानव को सुख की अनुभूति होती है।
मनुष्य अगर सही गलत में फर्क करना सीख जाता है, अपने कर्मों से अपना जीवन महान बना लेता है और सत्कर्मों का अपने जीवन में पालन करने के लिए समर्थ हो जाता है तो मनुष्य धरती में ही स्वर्ग की स्थापना कर लेता है।
मनुष्य को सिर्फ सोचने से स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती है अपने दुखों से पार लगाना होता है पुण्य कर जीवन आदर्श बनाना होता है।
जिंदगी में दुख का आना सच्चाई है जो हर पल की जीवन नईया में आते जाते रहते हैं, मानो तो स्वर्ग यहीं है ना मानो तो नरक सी जिंदगी है।
मनुष्य को विश्वास बनाए रखना होता है तो रिश्तों में प्रेम सागर बहता है। अगर साथ प्यार भरा है तो स्वर्ग सी खुशी महसूस हो जाती है।
ईश्वर और भक्तों का साथ हो और आस्था परवान चढ़ी हो तो समां स्वर्ग भरा ही होता है।