स्वामी श्रद्धानंद का जीवन परिचय Swami Shraddhanand Biography In Hindi: स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जिन्हें आर्यसमाज के प्रचारक के रूप में याद किया जाता है. इनका जन्म 2 फरवरी 1856 को पंजाब के जालन्धर में हुआ था.
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती के पिताजी उस समय की अंग्रेजी पुलिस के सिपाही रहे थे. इसी कारण पिता के तबादले के चलते उनका बचपन कही स्थानों पर गुजरा. बचपन में सरस्वती को उनके दोस्त वृहस्पति नाम से बुलाया करते थे.
स्वामी श्रद्धानंद का जीवन परिचय Swami Shraddhanand Biography Hindi

पूरा नाम | स्वामी श्रद्धानन्द |
अन्य नाम | बृहस्पति, मुंशीराम |
जन्म | 22 फ़रवरी, 1856, जालंधर, पंजाब |
मृत्यु | 23 दिसम्बर, 1926, चाँदनी चॉक, दिल्ली |
पिता | लाला नानकचंद |
पत्नी | शिवा देवी |
पुत्र/ पुत्रियाँ | दो पुत्र तथा दो पुत्रियाँ |
गुरु | स्वामी दयानन्द सरस्वती |
पहचान | आर्यसमाजी, समाज सेवक तथा स्वतंत्रता सेनानी |
आरंभिक जीवन (शिक्षा, विवाह)
पंजाब के जालन्धर में जन्में वैदिक धर्म के प्रचारक श्रद्धानंद जी का आरम्भिक जीवन विभिन्न स्थानों में व्यतीत हुआ. इनके पिता ब्रिटिश पुलिस में अधिकारी थे इस कारण तबादलों के चलते ये अपने परिवार के साथ एक से दूसरे स्थान जाते रहे.
नयें नयें स्थानों पर रहने के कारण स्वामी श्रद्धानंद की आरम्भिक शिक्षा विधिवत रूप से नहीं हो पाई. घर में इन्हें वृहस्पति और मुंशीराम के नाम से जाना जाता था.
एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती का बरेली में प्रवचन का कार्यक्रम था, नानकचंद अपने पुत्र मुंशीराम के साथ यहाँ सरस्वती को सुनने पहुचे, बालक मुंशी पर सरस्वती के तर्कों का बड़ा असर हुआ और ये आर्य समाज की और प्रवृत हुए.
शिक्षा पूर्ण करने के बाद मुंशीराम ने वकालत से अपने करियर की शुरुआत की, इसी समय शिवा देवी के साथ इनका विवाह सम्पन्न हुआ और जीवन सुख पूर्वक व्यतीत हो रहा था.
इनके दो पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हुई मगर जब ये 35 वर्ष के हुए तो शिवा देवी का देहांत हो गया. पत्नी वियोग में मुंशीराम का सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया और वर्ष 1917 में स्वामी श्रद्धानंद नाम के साथ सन्यास धारण कर लिया.
स्वामी श्रद्धानन्द का सामाजिक व राजनैतिक जीवन
दयानन्द सरस्वती के सम्पर्क में आने पर यह उनके जीवन से बहुत प्रभावित हुए तथा उनकी दीक्षा ले ली. जिसके बाद इन्होने उनका अनुसरण किया तथा आर्य समाज सुधारक के रूप में भूमिका निभाई.
स्वामी श्रद्धानन्द, सरस्वती के विचारो से कार्य सिद्धांतो तथा व्यवहारों से प्रभावित श्रद्धानन्द ने आर्य समाज के विकास के लिए कार्य करने शुरू कर दिया. वे आर्य समाज के आंदोलन के सामाजिक आदर्शो का प्रचार करने लगे.
स्वामी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त अंधविशवास और बुराइयों जैसे अंध विश्वास, जाति-प्रथा, छुआछूत तथा मूर्ति पूजा आदि के प्रबल विरोध आदि सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार बने.
1902 में स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने देश के परम्परागत शिक्षा पद्दति के अनुरूप नए रूप में हरिद्वार में एक आंतरिक विश्वविद्यालय ”गुरुकुल कागड़ी ” की स्थापना की.
उन्होंने जालन्धर में एक महिला कॉलेज की स्थापना की तथा दिल्ली में एक सामाजिक एकता व समरसता लाने के लिए दलित उद्धार सभा की स्थापना की.
उन्होंने एक साप्ताहिक पत्रिका सत्य धर्म प्रचारक का सम्पादन किया ताकि स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों व चिन्तनों से सारे देश के लोगों लाभान्वित हो सके.
इसके पश्चात स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी आर्य समाज संगठन की ओर से स्थापित शुद्धि सभा के अध्यक्ष भी चुने गये. ताकि जोर जबरदस्ती से चल रहे हिन्दू से मुस्लिम तथा इसाई धर्म में हो रहे स्थान्तरण को रोका जा सके.
वर्ष 1919 में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में स्वागत समिति के अध्यक्ष नियुक्त किये गये थे. 1922 में इन्होने सत्याग्रह में भाग लिया. 23 दिसंबर 1926 को एक मुस्लिम कट्टरपंथी ने इस महान समाज सुधारक स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती की हत्या कर दी थी.
13 अप्रैल 1917 के दिन से सन्यास ग्रहण के बाद श्रद्धानंद जी दलितोद्धार आर्य समाज द्वारा शुरू किये गये शुद्धि आंदोलन के अलावा भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता समन्वय के लिए हमेशा कार्यरत रहे.
हिन्दू धर्म में सुधारात्मक सोच तथा इनके योगदान को स्मरण करते हुए स्वामी श्रद्धानंद जी को हिन्दू पुरोधा भी कहा जाता है.उन्होंने न केवल आध्यात्मिक रूप से भारत को मजबूत करने का प्रयत्न किया.
बल्कि हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने की न केवल समर्थन किया करते थे. बल्कि स्वामी श्रद्धानन्द ही वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार-प्रचार किया तथा इसे आम लोगों की भाषा बनाने का यत्न किया था.
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती की मृत्यु (Swami Shraddhanand Death In Hindi)
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जिन्होंने जीवनभर देश की आजादी के लिए आंदोलनों में भाग लिया तथा एक क्रान्तिकारी की भूमिका निभाई. इन्होने अपने जीवन को सन्यासी जीवन को के रूप में ढाला.
ये अछूतों के हितेषी वक्ता थे. देश की इस महान विभूति के अछूतों को सहयोग करने के कारण कट्टर मुस्लिम अब्दुल रशीद नामक व्यक्ति ने छल कपट कर स्वामी श्रद्धानन्द की गोली मारकर हत्या कर दी.
23 दिसम्बर 1926 को अछूतों के मसीहा श्रद्धानंद गोली मारने के कारण इस संसार को अलविदा कर दिए. स्वामी की हत्या के दो दिन पश्चात कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी का भाषण सभी को आश्चर्यचकित कर देने वाला था.
गांधीजी ने इस भाषण में रशीद का पूर्ण सहयोग करते हुए. उन्हें निर्दोष बताया. उन्होंने बताया कि वे मेरे भाई के समान है. मै उनके लिए वकालत में लडूंगा. जो व्यक्ति देश को धर्मो में बाँट रहे है. जो हमारे लिए उचित नही है.
इस प्रकार स्वामी की हत्या पर गांधीजी ने पूर्णतया रशीद का साथ दिया. लेकिन रशीद एक अपराधी होने के कारण उसे कोई नहीं बचा सका. और उन्हें सरकार के नियमों के अनुसार फांसी की सजा सुनाई गई.